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रीझ न जानुं रीझाय न जानुं, न जानुं पद सेवा. वेद न जानुं किताब न जानुं, न लक्षन छंदा; तरकवाद विवाद न जानुं, न जानुं कवि फंदा. जाप न जानुं जुवाब न जानुं, न जानुं कथा वाता; भाव न जानुं भगति न जानुं, जानुं न सीरा ताता.. ग्यान न जानुं विग्यान न जानुं, न जानुं भजनामां; आनंद घन प्रभु के घर द्वारे, रटन करूं गुण धामा. अवधू. ४ अध्यात्म सज्झाय
हम तो दुनियां से न डरेंगे, आतम ध्यान धरेंगे. हम. निंदक खांते निंदा करशे, भक्त जनो गुण गाशे; दुनिया दिवानी गांडो कहेशे, कोईक मारण धाशे. किरियावादी कपटी लेखे, ज्ञानवादी मन घहेलो; भोगी लेखे ए भिखारी, छटकी कहे छटकेलो. दुनियादारी नहि है हमारी, ज्ञानदशा चित्त धारी; डाक डमाला मूरख चाला, ए सब खटपट वारी. स्याद्वाद मारग मनमांहि, श्रद्धा जिननी साची; अवलंब्यो मारग ए मोटो, कलिकाले पण राची. चित्त हमारा ज्यां रंगाया, त्यां हम रंगे रहीशुं; योग्य जीवनी आगल अंतर, तत्त्वनी वातो कहीशुं.
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अवधू. १
अवधू.२
अवधू.३
हम. १
हम . २
हम . ३
हम . ४
हम . ५