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विषय-कषायमां मस्त बनीने, क्यां गई भ्रातृ सगाई रे. केना० ४ ब्राह्मणी निज पुत्रने वेचे, धनने अर्थे लोभाई रे; अमरकुमारने मारण काजे, क्यां गई पुत्र सगाई रे. केना० ५ सूरीकान्ताए परदेशीने मार्यो, गळे अंगुठो दबाई रे; रायपसेणीमां भगवते भाख्यु,
क्यां गई पत्नी सगाई रे. केना०६ शेठाणी निज शेठने नांखे, ऊंडा कूवानी मांही रे; कर्म तणी जो जो विचित्रता,
क्यां गई पत्नी सगाई रे. केना० ७ चुलणी माता निज पुत्रने बाळे, लाखनुं घर बनाई रे; विषयमां अति लंपट थईने, क्यां गई मातृसगाई रे. केना० ८ केनी रे माता ने केना रे पिता, केना भाई भोजाई रे; विनयविजय पंडित एम बोले, साची धर्म सगाई रे. केना० ९
वैराग्यनी सन्झाय
(राग - जुनु रे थयुं रे देवळी) पंखी विना कोण माले रे, पांजरीयामां;
पंखी विना कोण माले... हंसा पांजरीयु ताहरूं, नथी कायम रहेवार्नु जावु पडशे आज काल, छोडी रे पांजरीयाने
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