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राजप्रश्नीयसूत्रे छाया-ततः खलु स सूर्याभो देवः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य आलोक प्रणामं करोति, कृत्वा अनुजानातु मे भगवानिति कृत्वा सिंहासनवरगतः तीर्थकगमिमुखः संनिषण्णः।
ततः स मर्याभो देवस्तत्प्रथमतायां नानामणिकनकरत्नविमलमहाई निपुणोपचिनदेदीप्यमानविरचितमहाऽऽभरणकटकत्रुटिनबरभूपगोज्ज्वलं पी. वरं मलम्ब दक्षिणं भुजं प्रसारयति । ततः ग्बल मशानां सदत्वचाम् सदृश्ययसां सदृशालावण्यरूपयौवनगुणोपपेतानामेकाऽऽभरणवसनगृहीत निर्यो. महावीर को समक्ष में प्रणाम किया (करिता अणु नाणउ मे भगवं तिकटु सीहासणवरगए तित्थयराभिमुहे मणिमण्णे) प्रणाम करके फिर दह उन तीर्थकर की ओर मुख करके सिंहासन पर 'भापान मेरे इस कार्य की अनुमोदना करें ' कह कर बैठ गया. (नएणं से मुग्यिाभे देवे तप्पढमयाए जाणामणिकणगर यणविमलमहरियनिउगोववियमिसिमिसितविरइयमहाभरणकड'गतुडियवरभूमणुज्जल पीवरं पलंय दाहिणं । मुयं पसारेह) इसके पीछे उस सूर्याभ देवने सब से पहिले अपने दाहिने हाथ को फैलाया पसार। यह उसका दाहिना हाथ अनेक प्रकार की मणियों के सुवर्ण के एवं रत्नों के निर्मल, महाई-भाग्यशालियों के योग्य, निपुग शिल्पियों द्वारा बनाये हुए एवं अत्यन्त चमकीले ऐसे बहमूल्य आभूषणों से, तथा विशेप कटक एवं त्रुटितरूप आभूषणों से चमक रहा था. पीवर-पुष्ट था और दीर्घ था. (नओ ण सरिसयाण मरिसत्तयाग मरिचयाण मरिमलावणामहावीरम्स आलोए पणामं करेइ) सूर्यासवे श्रम कारावानने साभ प्रभाए या. करित्ता अणुजाणउ मे भगवत्तिक सीहासणवरगए तित्ययराभिमुहे सणि. सण्णे) प्रणाम ीने पछी ते तय ४२नी १२५ भुग शमीने सिंहासन . ५२ 'लगवान भा२॥ २१मनी मनुभाहना २' डीन मेसी गयो. (नए णं से मु. रिया देवे तप्पटमयाए णाणामणिकर्णगरयणविमलमहरियनिउणोत्रचियमिमिमिसिंतविरइयमहाभरण-कडग-तुडिय-परभूमणुज्जलं पीवरं पलंयं दाहिणं भुय पसारेह ) त्या२, पछी ते सूर्यास हेवे सौ पाडसा पोताना જમણા હાથને ફેલાવ્યો. તેનો એ જમણે હાથ ઘણી જાતના મણીઓના, સુવર્ણ 'તેમજ રત્નોના નિર્મળ મહાઈ–ભાગ્યશાલીઓ માટે ગ્ય, નિપુણ શિલ્પીઓ વડે બનાવવામાં આવેલ અતીવ ચમકતા એવા બહુ કીમતી આભૂષણોથો, તેમજ કટક भने त्रुटित ३५ भाभूपोथी यमी रह्यो तो. पाव२-पु-हतो, · मने टीसांगा . (तंभोणं सरिसयाणे सरिसत्तयाण सरिसबयाणं सरिसलावण्ण रूब