Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 633
________________ ६१९ सुबोधिनी टीका' सु. ९१ सूर्याभिदेवस्य अलङ्कारधारणादिवर्णनम् सातिशयविभूषायुक्तं करोति कृत्वा दर्दरमलयसुगन्धगन्धितैः दर्दर=बहुल यत (पर्वत) मलय - मलयोद्भवाद् मलय - मलयज चन्दनं तस्य यः सुगन्धः= शोभनो गन्धस्तेन गन्धित्तैः चूर्णै: गात्रीणि 'भुख'डेड्' धवलयति, दिव्य च सुमनोदाम = पुष्पमाल्यं पिनयति = परिधास्यति । 'चूर्णै:' इत्यन्त्राक्षिप्यते । 'सुख'डेड' इति देशी शब्दः ॥ ९०॥ मूलम् - तरगं से सूरियाभे देवे केसालंकारेण महालंकारण आभरणालंकारेणं वत्थाल कारेणं चव्विणं अलंकारेण अलकियविभूसिए समाणे परिपुष्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अन्भु. ट्टित्ता अलं कोरियसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेण पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ, ववसायस अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिलण दारेण अणुपविइ, जेणेव सीहासणे जाव संनिसण्णे । तएणं तस्स सूरियाभएस देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा देवा पोत्थयरयणं उवर्णेति । तएण से सूरिया देवे पोत्थयरयण गिण्हs, गिण्हित्ता पोत्थयरयणं सुयइ, मुत्ता पोत्थयरयणं विहाडेइ, विहाडित्ता पोत्थयरयणं वाइ, वात्त धम्मियं ववसायं ववसइ, ववसित्ता पोत्थयरयण- पढिनिक्खमइ, पण आदिको से सुसज्जित बना हुआ वह सूर्याभदेव ऐसा सुशोभित हुआ कि मानों अलंकारों से विभूषित हुआ साक्षात् कल्पवृक्ष ही है, इसके बाद उसने मलयजचन्दन की अधिक से अधिक गंधवाले चूर्णो से अपने शरीर को धवलित किया और पुनः दिव्य पुष्पमालाको पहिरा सूत्र में जो "भुखंडेइ" क्रियापद आया है वह देशीय शब्द है और इसका अर्थ धवलित करना है । . ९० ॥ અનેલા સૂર્યાભદેવ એવા સુશેભત થયે કે જાણે અલકારોથી વિભૂષિત થયેલુ પ્રત્યક્ષ કલ્પવૃક્ષ જ હાય. ત્યાર પછી તેણે મલયજ ચંદનની સર્વાધિક સુગંધવાળા ચૂર્ણથી પેાતાના શરીરને ધવલિત કર્યું અને ફ્રી દિવ્ય પુષ્પમાળાએ પહેરી સૂત્રમાં જે “भुखंडे हु” स्याथः छे ते देशीय शब्द छे भने सानो अर्थ धवसित छे.सू. ८०lt

Loading...

Page Navigation
1 ... 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721