Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 680
________________ सुबोधिनी टीका मू. ९३ सूर्गभस्य प्रतिमापूजाचर्चा __ यौद्धग्रन्थेषु भगवतो महावीरम्य श्रमणानां श्रावकाणाञ्च अनेकानि उदाहरणानि विपतिपन्नः बौद्धैः प्रतिपादितानि सन्ति, तत्र यदि महावीर. स्वामी प्रतिमापूजामुपादेक्ष्यत तदा ते चौद्धा प्रतिमाया प्रकारे पजनविधी च जैनोपरि वन कटाक्षमपातयिष्यन, यत्र यत्र बौद्धानां जनमिद्धान्तैः सह. मतभेदो वर्तते तत्र तत्र तैः कटाक्षः कृत एव, प्रतिमापकारस्तत्पूजाविधिः न कटाक्षोकनाः, (१८) यद्यपि पुरातत्त्वस्य अनुपन्धानकरणममये भारतवर्षम्य भिन्नभिन्नदेशेषु क्रियत्योऽपि जिनमर्न यो भूगर्भाधनाः निष्काशिताश्च सन्ति तथापि अद्य यावत् ईदृशी एकाऽपि मूर्ति ने निगता यल्लेखेन 'इयं महावीरममकालीना तत्पूर्ववत्यन्यतोर्थकृत्पम कालोना वर्तते) इति स्पष्टतया विज्ञायेत, प्रतीयेत वा तेन विज्ञाय ते-प्रतिमा तत्पू जा च आडम्बरायैरीचार्यतिभिरेव वा संनिवेशिता न तु भगवत्समतेति (१९) १८-वद्वग्रन्थों में भगवान महावीर के श्रमणों के एवं श्रावकों के अनेक उदाहरण विप्रतिपन्न बौहोंने प्रतिपादित किये हैं, यदि महावीर स्वामीने मर्तिपूजा का उपदेश दिया होता तो वे बौद्ध जो कि मूर्तिपूजा के प्रति विप्रतिपन्न है जैनों के ऊपर नियम से कटासपात करते. जहां जहां बीद्धों का जैनसिद्धान्त की मान्यताओं के साथ मतभेद हैं, वहां उन्होंने कटाक्ष किया ही है। १९---यद्यपि पुरातत्व के अनुसन्धान करने के समय में भारतीयभिन्न२ प्रदेशों में कितनीक मूर्तियां भूगर्भ से निकली हुई प्राप्त हुई है, परन्तु आजनक भी एप्ली एक भी मूर्ति नहीं निकली है कि जिसके लेख से 'यह महावीर की मामालीन है अथवा उनके पूर्ववर्ती अन्यतीर्थकर के समकालीन है' ऐली वात स्पष्टरूप से जानी जा सकी गई हो. सर्व (૧૮) બૌદ્ધગ્રંથોમાં ભગવાન મહાવીરના શ્રમણોના અને શ્રાવકેના અનેક ઉદાહરણો વિપ્રતિપન બૌદ્ધોએ પ્રતિપાદિત કર્યા છે જે મહાવીર સ્વામીએ મર્તિપૂજાને ઉપદેશ કર્યો હોત તો તે બૌદ્ધ–કે જે મૂર્તિપૂજાના પ્રતિ વિપ્રતિપન્ન છે–જેને પર નિશ્ચિતરૂપથી–આ વિષે કટાક્ષ કરત. જ્યાં જ્યાં બૌદ્ધોને જૈન સિદ્ધાન્તની માન્યતાઓની સાથે મતભેદ છે, ત્યાં ત્યાં તેમણે કટાક્ષ કર્યા છે જ. (૧૯) ભારતના વિભિન્ન પ્રદેશમાં પુરાતત્વના અનુસંધાન કર્નારાને કેટલીક મૂર્તિઓ ભૂગર્ભમાંથી પ્રાપ્ત થઈ છે. પણ હજી આજસુધી એવી એકે ગતિ મળી નથી કે જે મહાવીર સ્વામીની સમકાલીન કે બીજા તીર્થકરોની સમકાલીન હો

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