Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 687
________________ ૬૭૨ राजप्रश्नीयसूत्र औपपातिके-तीर्थकृतो वर्णने श्मश्रुवर्णन वर्तते यथा-'अवांट्ठय सुधिभत्तचित्तम' अवस्थितविभक्तचित्रश्मः ' इति पाठः, अत्र तु न तथेति चतुर्थः पूर्णपरविरोधः ४ । इत्यादि । किञ्च-औपपातिके कोणिको राजा भगवद्वन्दनाथ" भगवासमीपे पञ्चाभिगमतो याति, तथाहि-तए णं से कोणिए राया भ भ. मार पुत्रो०............समण भगव महावीर पंचविहेण अभिगमेण अभिगच्छइ; तं जहा सचित्ताग दवाण विउसरणयाए १, अचित्ताग दव्याण अविउसरणयाए २, एगमाडियं उत्तरासंगकरणेण ३, चक्षुष्फासे अंजलिपग्गहेण ४, मामो एगत्तोभावकरणेण ५, समण भगव महावीर तिक्खुत्तो पायाहिणेपयाहिण करेइ करित्ता दह नमस" एक हजार आठ लक्षणों को धारण करनेवाले ऐसा पाठ अन्यत्र मिलता है यहां पर वैसा नहीं है यह तीसरा विरोध है। ___औपपातिक सूत्र में तीर्थंकर के वर्णन में श्मश्रुका वर्णन है जैसा कि 'अवष्ट्रिय सुविभत्त चित्तमम' ठीक प्रकार से व्यवस्थित और सुंदर रचनावाली दाढीवाला ऐसा पाठ मिलता है यहां पर उस प्रकार का वर्णन नहीं है ये चौथा विरोध है। ___ औपपातिक सूत्र में कोणिक राजा भगवान की वंदना के लिये भगगन के पास पांच अभिगम से जाते हैं जैसा कि-'तएणं से कोणिए राया भंभसारपुत्त.... ...समणं भगवं महावीर पंचविहेणं अभिगमेण अभि गच्छइ, तं जहा-सचित्ताणं दवाणं विसरणयाए १, अचित्ताण दवाणं अविउसरणयांए२,२, एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं२, चकखुएफासे अंजलिपग्गहेणं४, मणसो एगत्तीभावकरणेणं५, समणं भगव महावीर तिक्युलो હતર આ લક્ષણોને ધારણ કરનાર એવે પાઠ બીજે મળે છે. અહીં તેમ નથી, • श्रीन विरोध छ. ઓપપાતિક સૂત્રમાં તીર્થકરના વર્ણનમાં રમનું વર્ણન કરેલ છે. જેમકે "अवद्विय सुविभत्त चित्तम सू" सारी शत: व्यवस्थित भने सुर २यनाull દાઢીવાળા એ પાંઠ મળે છે. અહીં તે રીતનું વર્ણન નથી એ વિરેાધ છે. પપાતિક સત્રમાં કેણિકરાજા ભગવાનને વંદના માટે પાંચ પ્રકારના અભિગમથી मवाननी पांसे तय छे.. भ3--तएण से कोणि ए राया भभसारपुत्ते समण भगव महावीर पचविहेण अभिगमेण अभिगच्छइ त जहा-सचित्ताण दव्याण विउसरणयाए १ अचित्ताणं दव्वाणं अचिउसरणायाए २, एगसाडिय उत्तरासंगगोणं • नामे अंजलि पगडेणं है. मणमो एगत्तीभावकरणेणं ५,

Loading...

Page Navigation
1 ... 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721