Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 698
________________ सुबोधिनी टीका. सू. ९४ सूर्याभदेवस्य सुधर्मसभाप्रवेशादिनिरूपणमू . वज्रमयेषु गोलवृत्तसमुद्गकेषु प्रतिनिक्षपति, माणक चैत्यस्तम्भ लोमहस्तकेन प्रमाज यति, दिव्यया दकधारया सरसेन गोशीपचन्दनेन चर्च कान् ददाति, पुष्पारोहण यावद् धूपं ददाति । यत्रैव सिंहासन तदेव, यव देवशयनीयं · तदेव, यत्रैव क्षुद्रमहेन्द्रध्वजस्तदेव, यत्र त्र प्रहरणकोशः चोप्पालकस्तत्रैवं उपागच्छति, लोमहस्तकं परामृशति, पहरणकोश चोप्पाल लोमहस्तकेन उनने समक्ष धूप जलाई और फिर बाद में उन जिन अस्थियों को उसने उन्हीं वज्रमय गोलपत्त समुद्गकों में बन्द कर रख दिया.१, (माणवगचेइय " . खंभ लोमहत्थएणपमजइ) बाद में उसने माणवक स्तंभ की लोमहस्तक • से प्रमाजना की (दिवाए दगधाराए सरसेण गोसीसचंदणेण चच्चए दलयइ) और दिव्य जलधारा से सरस गोशीष चन्दन से उसे चर्चित किया. यावत् ... धूपदानान्त तक के और भी सब काम उसने किये२, (पुप्फारुहण जात्र धृवदलयइ) यही बात इस मुत्रपाठ द्वारा समझाई गई है। (जेणेव सीहा. सणे तं चेव) इसके बाद वह जहां सिंहासन था वहाँ आया, वहां पर भी उसने प्रमार्जना से लेकर पूर्वोक्त धूपदानान्त तक के सब कार्य किये, (जेणेव देवसयणिज्जे, त चेव, जेणेव खुड्डागमहिंदज्झए त चेव) वहां से फिर वह देवशयनीय के पास आया-यहां पर भी उसने वही सव धूपदा. नान्त तक के कार्य किये फिर वहां से वह क्षुद्रमहेन्द्रध्वज के पास आयावहां पर भी वही पूर्वोक्त सब कार्य उसने किये५ (जेणेव पहरणकोसे चोप्पालए तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वह 'जहां प्रहरण कोश-(शस्त्रभंडार) અને ત્યારપછી તેણે તે જિનઆથિઓનેવજી ગેલવૃત્ત સમુદ્ગલોમાં બંદ કરીને મૂકી દીધાં.૧, (माणवग चेइय खंभ लोमहत्थग पमजाइ) त्यापछी तेणे भारत'मनी होम. २४५ प्रभारी . (दिवाए दगधाराए सरसेण गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ અને દિવ્ય જલધારાથી સિંચિત કરીને સરસ ગશીર્ષચન્દનથી તેને ચર્ચિત કર્યો. यावत् धूपदान सुधानी. ची विधिय! परी ४२.२, (पुप्फारुहणं जाव ध्रुवं दलयई) से पात २मा सूत्रपा843 समन्तामा मावी छ. (जेणेव सीहासणे तं चेव) त्या२५०ी ते या सिहासन तु त्या माव्या. पण तेरे प्रभाई नाथी भांडीने धूपहान सुधीन सब अर्यो पूरा प्रया'. (जेणेव देवसयणिज्जे, तं चेव खुड्डागमहिंदज्जए तं चेच) त्यांथी पछी ते देवशयनीयनी पासे मान्यो, त्यो प ते धूपहान सुधीना બધાં કાર્યો સંપન્ન કર્યા. ત્યાંથી પછી તે મુદ્ર મહેન્દ્રવજની પાસે ગયો. ત્યાં પણ रित मा यो सपन्न अर्या., (जेणेव पहरणकोसे चोप्पालए तेणेव उवागच्छइ) त्या२पछी ते प्रडा (शस्त्र (२) न यो त२३गया. (लोमहत्थग परामुसइ)

Loading...

Page Navigation
1 ... 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721