Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 719
________________ ७०४ राजप्रश्नीयसूत्रे छाया -सूर्याभस्य खलु भदन्त । देवस्य कियन्त काल' स्थितिः प्रज्ञप्ताः ? गौतम । चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । भिस्य खलु भदन्त देवस्य सामानिकपरिपदुपपन्नकानां देवानां कियन्त काल स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम । चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञाता महद्धिको महाधुतिको महावलो महायशा महासौख्यो महानुआगः अर्याभो देवः । अहो खलु भदन्त । सूर्याभो देवो महद्धिको यायन्महानुभागः ॥ ० ९७|| देवों की सूर्याभविमान में कितनी स्थिति कही गई है-- 'सूरियाभस्स ण भते ! देवस्ल केवड्यं कालं ठिई पण्णत्ता इत्यादि। सूत्रार्थ-(मूरियामस्स ण माते ! देवस्स केवइयं काल ठिई पणत्ता) हे भदन्त ! सूर्याभदेव की कितने काल की स्थिति कही गई है ? (गोयमा ! चत्तारि पलिओचमाई ठिई पणत्ता) हे गौतम ! सूर्याजदेव की चार पल्योपम की स्थिति कही गई है। (मुरियाभस्स ण मते देवम्स सामाणियपरिसाव वण्णगाण देवाणं केवईयं काल लिई पण्णता) हे भदन्त ! मूर्याभदेव के सामानिकपरिषदुपपन्नक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? (गोयमा ! यस्तारिपलिश्रोत्रमाई ठिई बष्णत्ता) हे गौतम ! मूर्याभदेव के सामानिकपरिपपपन्नक देवो की स्थिति ४ पस्योपम की कही गई है। (महाए, भहजुत्तिए महन्धले, महायसे. सहासेक्सेि, महाणुभागे सरिया देवे) यई मूर्याभदेव महाऋद्धिदाला, महायुतिबाला, महायसवाला, महायशवाला, महासौख्यवाला एन महापभाववाला कहा गया है. (महोण સૂર્યાભવિમાનમાં કેટલી સ્થિતિ કહેવાય છે. मुरियाभास भते ! देवरस केवश्य काल ठिई पण्णत्ता इत्यादि. सूत्रा;-(मरियाभस्ल ण भते ! देवस्ल केवइय काल' ठिई पण्णता) ए महत ! सूर्याभवनी स्थिति सा अपनी वामां आवी छ ? (गोयमा ! चनारि पलिओवमाई ठिई पण्णता) ॐ गौतम ! सूर्यालवनी स्थिति या पक्ष्यापभसी वाम मावी छ. (मूरियासस्स णं भंते ! देवस्स सामाणिय परिसाववष्णगाण देवाण केवइय कालं ठिई पण्णत्ता) , मत ! सामना सामानि परिघटु५५-न देवानी स्थिति सा नी पाम मावी छ ? (गोयमा ! चशारिपलिओनमाई ठिई जता) गौतम ! सूर्याभवना सामान पर पटुपयन देवानी स्थिति ४ पक्ष्या५म टी उपाय छ. (महरि . महजशिए महळ्यले, महायमे, महासारखे, महागुंभागे मुरियामे देवे) PAL सूर्यालय મહાદ્ધિ મહાતિ, મહાબળ મહાયશ, મહાસગ્ય અને મહાપ્રભાવ સંપન્ન કહેવાય છે

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