Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 691
________________ - राजप्रश्नीयसूत्रे युद्वधा तदनादर एवं स्यात्, सर्व चैतदृ मिथ्यात्वविजम्भितमेव चातुर्गतिक संसारपरिभ्रमणमूलकत्वाद् इत्यल' विस्तरेणेति तस्मात् अन्वयव्यतिरेका. भ्यां सिद्धमिदं यदयं जिनप्रतिमाशब्द: तीर्थंकरस्य प्रतिमा प्रतिपादको न भवितुमईति, अपि तु कस्यापि यक्षस्य प्रतिमायाः प्रतिपादकः, कामदेव स्य वा प्रतिमायाः प्रतिपादको भवितुमर्हति, यतो जिन शब्देन कामदेवार्थ स्यापि ग्रहण भवति, तशचोक्त हैमीनाममालाकोशे ___ "अहन्नपि जिनश्चैव, जिनः सामान्यकेवली । कन्दपऽपि निनश्चैव, जिनो नारायणो हरिः ॥ अतएव केवलजिनपदग्रहणेन तीर्थकरार्थकरण सर्वथा अनुचितमेव प्रतिभाति ।२२॥ किञ्च अपरमिदं तत्त्वमवसेयम्-उक्त चाचारागसूत्रे पष्ठाध्ययने भगवता "आणाए मामगं धम्म एस उत्तरवादे इह माणवाण वियाहिए" आज्ञायां बुद्धि से उनका अनादर ही हुआ। अर्थात् आशातना हुई, इसलिये यह सब मिथ्यात्व के उदय का ही प्रभाव है, एवं चतुर्गति का संसार के परिभ्रमणका मूल कारण है इसलिये अतिविस्तारकी आवश्यक्तो नहीं है. अतः अन्वयव्यतिरेक से यह सिद्ध होता है कि जो यह जिनमतिमा शब्द है वह तीर्थंकर की प्रतिमा का प्रतिपादक नहीं हो सकता है. किन्तु यह किसी भी यक्षकी प्रतिमा का प्रतिपादक है. अथवा कामदेव की प्रतिमा का प्रतिपादक हो सकता है। क्यों कि जिनशब्द से कामदेवरूप अर्थ का भी ग्रहण होता है-सोही हैंमीनाममाला कोश में-'अहन्नपि जिनश्चव, जिनः सामान्यकेवली, कन्दर्पोऽपि जिनश्चीव, जिनो नारायणो हरिः' ऐसा कहा है, इसलिये केवल 'जिन' ऐसे पद के ग्राण से तीर्थकररूप अर्थ करना यह सर्वथा अनुचित ही मालूम पडता है। २४---यह एक और धात जाननी चाहिये-आचाराङ्ग मूत्रके छ? अध्ययन में भगवान् ने कहा है "आणाए मामगं धम्म” इत्यादि બુદ્ધિથી તેમનો અનાદર થયે કહેવાય અર્થાત આશાતનાજ, થઈ એથી આ બધું જ મિથ્યાત્વના ઉદયને જ પ્રભાવ છે. અને ચતુતિક સંસારના પરિભ્રમણને મૂળકારણરૂપ છે. જેથી અતિ વિસ્તારની આવશ્યકતાની જરૂર નથી, એથી ય વ્યતિરેક મુજબ આ વાત સિદ્ધ થાય છે કે આ જિપ્રતિમા શબ્દ તીર્થકર પ્રતિમાને વાચક નથી પણ તે ગમે તે યક્ષ પ્રતિમાને વાચક છે કે પછી તેને કામદેવની પ્રતિમાને પણ વાચક કહી શકાય. કેમકે જિન ५६यी सम५३५ अर्थ यह बाए य . "भी नाममासा आशमा" अहन्नपि जिनश्चय, जिनसामान्यकेवली, कन्दपाऽपि जिनथैव, जिनो नारायणो हरिः । અદના આટલા સ્પષ્ટ કર્યા છે. એથી જિનપદથીતીર્થકર અર્થ શહgકરે એગ્ય નથી. २४ rit, 21-1 साना ! Atif आणाप मामगंधम्म' इत्यादि। કહેવામાં આવ્યું છે. આ મુજબ મનીષીને ભગવાન તીર્થકરની આજ્ઞાને ઘમ માને છે. કેઈ

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