Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 684
________________ सुबोधिनी टीका सू. २३ सूभिदेवस्य प्रतिमापूजाचर्चा भवति, स्तनस्य वर्णन नास्ति, किन्तु अत्र निन-प्रतिमाया वर्णने तु स्तन. स्थापि वर्णन वर्तते, अरश्च तत्त्वम्-मभोः वर्णनमसङ्गे अष्टोत्तरसहस्रपुरुषलक्षणानां वर्णन विद्यते किन्तु पतिमावर्णने तथा नास्ति अत्रेय विचारणा यत्-सर्वोत्र जिनशासने यच कुत्रापि प्रतिमा तत्पूजा चोपलभ्यते तत्र सा प्रतिमा तत्पूजा च कामदेवादिदेवानामेव भवितु. महति नतु भगवतोऽहत इत्यनुनीयते । यतो हि समस्तमेव आहत शास्त्र मर्थतो भगवताऽहत वोपदिष्टम् ग्रथितं च तदनुसारेण मृत्रादिरूपेण गणधरैः "अत्थ भासइ अरिहा मुक्त गथति गणहरा निउणा' इति शास्त्रपामाण्यात् । वात यह भी जाननी चाहिये कि भगवान के शरीर के वर्णन प्रसङ्ग में वक्षःस्थल का वर्णन होता है, स्तन का वर्णन नहीं है किन्तु जिनप्रतिमा के वर्णन में तो तन का भी वर्णन किया है, तथा एक बात यह भी है कि- प्रभु के वर्णनप्रसङ्ग में १००८ लक्षणों का वर्णन है, किन्तु प्रतिा के वर्णन में ऐमा नहीं है । ___ यहां पर यह विचारणीय है कि-जिनशासन में सर्वत्र जहां कहीं पर भी प्रतिमा एवं उनकी पूजा की उपलब्धि होती है वहां प्रतिमा और उनकी पूजा विधि कामदेवादि देवताओं की ही हो सकती है, अन्त भगवान् की नहीं, ऐसा अनुमान होता है । कारण कि समस्त जैनशास्त्र अर्थतः अहन्त भगवान् द्वारा ही उपदिष्ट और उसके अनुसार मूत्रादिरूप से गणधरोंने ग्रथित किया है। कहा भी है-'अन्य भासइ अरिहा सुत्त गथति गणहरा निउणा' अन्त भगवान् अर्थ कहते हैं और उसे गणधर सूत्रमें ग्रथित करते है વળી ભગવાનના શરીર વર્ણન પ્રસંગમાં વક્ષસ્થલનું વર્ણન હોય છે, સ્તનનું વર્ણન નહિ. પણ જિન પ્રતિમાના વર્ણનમાં તે સ્તનનું પણ વર્ણન છે. • વળી, પ્રભુના વર્ણનમાં ૧૦૦૮ લક્ષણોનું વર્ણન કરવામાં આવે છે, પણ પ્રતિમાના વર્ણનમાં આ प्रमाण थयु नथी. . . . - અહીં વિચારવા જેવું એ છે કે-જૈનશાસનમાં બધે ઠેકાણે જ્યાં જ્યાં પ્રતિમા (મૂતિ) કે તેની પૂજાવિધી મળે છે ત્યાં ત્યાં પ્રતિમા કે તેની પૂજાવિધી કામદેવાદિ દેવતાઓની જ હોઈ શકે છે. અહંત ભગવાનની તો નહીં જ એનું અનુમાન કરી શકાય છે. : - કારણકે સઘળું જનશાસ્ત્ર અર્થતઃ અહત ભગવાને જ ઉપદેશેલું છે. અને તે પ્રમાણે धन्ये सूत्राहि३पथी थेद छ. युं पशु छ 3-अत्थं भासइ अहिहा सुत्तं गति गणहरा-निउणा" अर्थातू म त मावान म१३५थी छ भने तन ગણધર સૂત્રમાં ગૂંથે છે. એવું શાસ્ત્રવચન છે. યથાવસ્થિત જે રીતને અર્થ કેવલા

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