Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 647
________________ ६३२ गजप्रश्नोयसूत्रे देव पृष्ठतः पृष्ठतः समनुगच्छन्ति । ततखलु म सूर्याभो देवः चतुर्भिः सामानकसाहस्रीभि यावत् अन्यैश्च बहुभिश्च मर्याभविमानवामिभिर्दे बैच देवीभिश्च लाडू सम्परितः-स वेष्टित: न् मर्वयां यावद् णादितरवेण-सर्वद्वर्या सर्वश्रुत्या सर्व वलेन सननादयेन सर्वादरेण सर्व संभ्रमेण सर्व पुष्पमाल्यालङ्कारेण सत्रुटितशब्दसन्निनादेन महत्वा द्वधा महल्या श्रुत्या महता बलेन महता समुइयेन महता वर टिन यमकसमकमणादितेन संचलितो यत्रैव सिद्धायतन तत्रैव उपागच्छनि, उपागत्य पौरिन्येन पूर्वदिक स्थितेन द्वारेग सिद्धायतनम् अनुपविशति, अनुप्रविश्य तत्र सिद्धयतने यत्रैव देवच्छन्दः तत्र देवच्छन्द के च पत्रव जिनप्रतिमास्तत्रैव उपाग च्छति, उपागत्य आलोकदर्शने सत्येव जिनप्रतिमानां प्रणामं करोति, प्रणाम कृत्वा लोमहस्तकलोममयी प्रभार्जनी महाति, गृहीत्वा ततश्च-जिन-- प्रतिमाः'लोमहस्तकेन मार्जयति, प्रमाय सुरभिणा सुगन्धयुक्तेन गन्धोद के न= गन्धद्रव्यमिश्रितेन पारिणा जिमप्रतिमाः स्नपयंतिं. स्नपयित्वा सुरभि कापायिकेण-मुरभिगन्धयपाकापरिकमितेन अजपोछलनेण जिनमतिमाना गात्राणि रूक्षयति-भोछति, क्षयित्या संरसेन गोशीपचन्दनेन गात्राणिजिनपरिमानामङ्गानि अनुलिम्पति-चर्च यति, अनुलिप्य जिनप्रति मानाम् अहतानि अखण्डितानि देवदध्ययुगलानि निवासयति-परिधापयति, टीकार्थ-इमका बूलार्थ के जैसा ही है-'सावेड ए जान पाइयरवेणं' में जो यह यावत्यद अाया है-उससे यहां 'सर्वद्युत्या, सर्ववलेन, सर्वसमु. दयेन, सर्वादरेण, सर्वविभूपया, सर्वसंभ्रमेगा, सर्बपुष्पमाल्यालंकारेण इत्यादि पाठ से लेकर 'वरचटितयसकसमक्रमणादितनःसंलित:' यहाँ तक का पाठे गृहीत हुआ है। अच्छरमा' नाम शुद्धभूमिका है। चांडनामक गन्धद्व्यांवशेष का नाम कु.दुरुष्क है। लोग्नान का नाम तुरुष्क है अनेक प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों के संयोग से धूप बनती है ॥ मू० ९२॥ st - सूत्रन टी भूमाथ -20 प्रमाणे ४ छ. 'सठियडीए जाव पाइयरवेणं' माने यावत् ५४ छ तेथी म. सद्युत्या, सर्व बलेन, सर्वसमुदयेन, सर्वादरेण, सर्वाविभूपया, :सर्वस भ्रमेण, सर्व पुष्पमाल्याल कारेण' पोरे पायी गाडीने 'वर त्रुटितयमकसमक प्रणादितेन नवलितः' मी सुधीना या अ ययु छ. 'अच्छरसा' शुद्ध भूभिन ४ ६. यीउनाम आधद्रव्यવિશેષને કુંટુરુષ્ક કહેવામાં આવે છે. લબાનને તુરુષ્ણ કહે છે. અનેક પ્રકારના સુગં ધિત દ્રવ્યના સંમિશ્રણથી ધૂપ તૈયાર કરવામાં આવે છે. સૂ. ૯ર છે

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