Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 677
________________ ६६२ ". ... . ...... .रश्नीयांजप्रसूत्र नत्रेषु स्थान म्यान पुरी नगरादीनां वन काम. यथा भौगनिकादौ चम्पाप्रभृतिनगीगां नगाणां च यद वर्णन नत्र बहूनां विशालनगरी नगराणां वर्णन वर्तते यत्र यक्षमन्दिराणां पक्षमाम् वर्णन संबंध यु ममुल्लमनि। किन्तु जैनमन्दिराणाम् तीर्थक प्रतिमान. न कुत्रापि च कृता बत, अयनेको महविष्यः, यद नरिमन मये तीर्थकरपतिमानां तन्मन्दिरा गाञ्च प्रचारोऽभविष्यत् तदा नून में शास्त्रेषु तेषामुलेखो नियमेना भविष्यत यन केनापि गानश्य मंभवत किन्तु फिरपि नोपलभ्यते. नम्मान सिद्ध मिदं यत् प्रतिमापूजा न प्रामाणिकी, अपि तु अपमाणिकी एवेति (१४) -१४--जैनमत्रों में स्थान स्थान पर पुरी नगी आदिको का वर्णन किया गया हैं, जमा कि ,पातिक सूत्र में नपा आदि नगरियो का वगन यहां अनेक विशाल नगरों आदि का वर्णन आता है, परन्तु विचारने की बात यह है कि जहाँ यक्ष मन्दिरों का एवं यक्षनियों का जब वर्णन मिलता है तो हर या बात है कि जनम दिरों का और जनमतियों का वर्णन नहीं मिलता है. वहीं ता वही पर भी इस विषय की चर्चा त भी नहीं की गई है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है। यदि उम समय ती कर मूतियों का एवं उनके मन्दिरों का प्रचार होता ना निगम से शास्त्रों में उनका उल्लं । किमी न किती रूप में किया गया मिलता-परन्] हम का कर कही या भी थोडे बहुतरूप में भी इल पार का उल्ले व नहीं मिलता है. इस कारण यह सिद्ध हो जाता है कि- माजी .. प्रामाणिक नहीं है, सामागि हो । ... T . .. (१४) संत्रीभागा पुरी, नाश वगैरेनु: 40 :४२पामा આવ્યું છે. દા. ત. પપાંતિક ચંપા વગેરે નગરીઓનું વર્ણન તેમજ વિશાળ नानु: पान ४२वाभा मायु ( वात धानुः यान जय सेवा છે કે ત્યાં લક્ષણ દિશે અને યક્ષમૂતિઓનું વર્ણન તો વળે છે પણ જૈનમંદિરો અને જોર્તિઓનું વર્ણન મળતું નથી. ત્યાં કોઈ પણ સ્થાને છે. આ વિષેની ચર્ચા કરવામાં વીન ખરેખર આ અંક -iધ લેવા જેવી વાત છે. જે તે સમયે તીર્થકરોની મૂર્તિઓ અને તેમના મંદિરના પ્રચાર હોત તો યથાનિયમશાસ્ત્રોમાં તેમને ગમે hini योमय गय होत. मेथी में वात सिद्ध याया छ भूल...

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