Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 654
________________ सुबोधिनी टोका सू. ९३ सूर्याभदेवस्य कार्यक्रमवर्णनम् बहुमध्यदेशभाग लोमहस्तेन प्रमान यति, दिव्यया दकधारया अभ्युक्ष यति, सरसेन गोशोषचन्दनेन पचालितल मण्डलकम् आलिखति, कचग्रहगृहीत यावद धूप ददाति चव दाक्षिणात्यस्य सुखमण्डपस्य पाश्चात्य द्वार तत्रैव उपागच्छति. लोमहस्तकं परामृशति, द्वारचेट्यौ च शालमञ्जिकाश्च व्यालरूपाणि च लोमहातेन ममा यति, दिव्यया पिल्लें दारे मुहमंडवे जेणेच दाहिणिलस्त मुहमंडवम्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छ!) इसके बाद वह सूर्याभदेव जहाँ दाक्षिणात्यद्वार में मुखमण्डप था और उसमें भी जहां उस दाक्षिणात्य खम डपका बहुमध्यदेशभाग था, वहां पर आया (लोमहत्थग परामुसइ) वहां आकरके उसने लोमहस्तक, म उसके बहुमध्यदेशभाग का प्रमार्जन किया. (दिव्यारा दगधाराए अभुक्खेइ) और दिव्य जलधारा से उसका सिंचन किया. (सर सेणं गोसीसचंदणेणं पंच गुलितल मडलग' आलिहइ) एवं सरस गोश चन्दन से उस पर पचाहुलितलवाले मंडलक का लेखन किया. (कयामाहहिय जार धूव दलगइ) लेखन करके फिर उसने उसे कचग्रहगृहीत यावत् विममुक्त पचवर्णवाले पुष्पों से मुक्तपुष्पपुंजोपचारकलित किया फिर धूप जलाया (जेणेव दाहिजिल्लस्स मुहमडवस्स पञ्चथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छद) इसके बाद वह मूर्याभदेव दाक्षिणात्य मुखमण्डप के पाश्चात्य द्वार पर आया (लोमहत्थग परामुसइ, दारचेडोप्रो यसालभजियोओ, बालरूमा ग लोमहरयेण पराप्नुपड) वहां आकर के उसने लोमहम्तक को उठाया. फिर उम लोमहस्तक से द्वारशावाओं को शालभंजिकाओं को एवं यालरूपों को साफ किया. (दिवाए देसमाए तेणेव उवागच्छइ) त्यारपछी ते सूर्यालये यक्षिणात्य द्वारभां भुजમંડપ હતું અને તેમાં પણ જ્યાં તે દક્ષિણામુખમડપને બહુ મધ્ય દેશભાગ હતે त्यो गयो. (लोमहत्थग परामुसइ) त्यां धन तेणे सो त बाधा (वहुमज्झदेसभाग लोमहत्थेण पमनइ) मने ५७ तशे ते सोभरत थी तेना भाईममध्यशिलानु प्रमान यु(दिव्याए दगधाराए अभुक्खेइ) याने व्यास धाराथा तेनु सियन यु. (सरसेण. गोसीसचंदणेण पचंगुलितलं मंडलग आलिहइ) मने सरस गाशी नयी ५यांशुलितent भनी त्या स्यना . (कयन्गहगहिय जाव, वंदलयइ) त्या२पछी तेणे याहीत. यापतू विप्रभुत પાંચવર્ણવાળા પુષ્પથી તે સ્થાનને સુભિત કર્યું અને ત્યારબાદ ધૂપ સળગા. (जेणेव दाहिणिल्लस्स . मुहम डबस्स पञ्चस्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ) त्याश्पछी ते सूर्याभव दक्षिात्य भुमभन! पाश्चात्यद्वा२ ५२ माव्या. (लोमहत्थग परामुसइ, दारचेडीओ य, सालभजियाश्रो, वालरुवए य लोमहत्थेण परामगड) ત્યાં જઈને તેણે મહસ્તક હાથમાં લીધું અને તેનાથી દ્વારશાખાઓ, શાલભંજિકાઓ

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