Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 623
________________ सुबोधिनी टीका' सु. ८८ सूर्याभिदेवस्य इन्द्राभिषेकवर्णनम् ६०९ - बहूनां सूर्याभविमानवासिनां देवानां च देवीनां च = आधिपत्यं यावत् महल * महद कारयन् पालयन् विहरस्त्र - इति कृत्वा जयजय - शब्द प्रयुञ्जन्ति ॥.८८|| } टीका --- 'तरण' त' इत्यादि ८ C " ततः खलु तं सूर्याभ देव चतस्रः सामानिकसाहरूयः = चतुरूल हस 'संख्यकाः सामानिकदेवाः यावत् - यावत्पदेन - ' चतस्रः अग्रमहिष्यः सपरिबारा, तिस्रः परिषदः, सप्त अनीकाधिपतयः' इति संग्राह्यम्, तथा - षोडश आत्मरक्षसाहस्रयः =पोडशसहस्रसंख्यका आत्मरक्षकाः, तथा अन्ये च बहवः सूर्याभराजधानीवास्तव्या: = सूर्याभदेवस्य राजधान्यां निवसनशीलाः देवाच Gova मेहता महता अतिविशालेन इन्द्राभिषेकेण अभिषिञ्चन्ति अभिषिच्य प्रत्येकस्=एकैकशः कृत्वा क्रमेणेत्यर्थः करतलपरिगृहीत' शिर आवन्त" मस्त के अञ्जलिं कृत्वा एवं = वक्ष्यमाणां वचनम् अत्रादिषुः उक्तवन्तः, तथाहि- -जयवहूणं सरियामचिमाण वासिण) सूर्याभविमानवासी बहुत से (देवाण य देवीण य) देवदेवीयों का ( ओहेवचा जाब महया महया कारेमापो. पालेमाणे बिराहि ति जयजयलद्द' पतंजति) आधिपत्य यावत् करते हुए, उनका पालन करते हुए, आप रहे इस प्रकार कहकर पुनःजयजय शब्दों का प्रयोग किया । टीकार्थ - इसका मूलार्थ के जैसा ही है. परन्तु कहीं २- पर जो विशेषता है वह इस प्रकार से है, सूर्याभदेव का चार हजार सामानिक देवौने यावत्पद ग्राह्य सपरिवार चार अग्रमहिपियोंने. तीन परिषदाओंने, सात अनिकाधिपतियोंने तथा १६ हजार आत्मरक्षक देवोंने एवं सूर्याभराजधानी वास्तव्य : देवकी राजधानी में निवसनशील बहुत से देव और देवियों ने अतिविशाल इन्द्राभिषेक से अभिषेक किया. अभिषेक करने के बाद फिर क्रम से एक २ देवने करतलपरिगृहीत एवं शिर पर आवर्त वाली ऐसी अंजलि वासिणं) सूर्याल विभानवासी घाणां (देवाण च देवीणय) देवदेवीओ पर (आहेबच जाब महस्रा महया कारेमा पालेमाणे विहराहिलि, जय जय सह पडजति) શાસન યાવત્ કરતાં તેમનું તમે પાલન કરતા રહેા આ પ્રમાણે,કહીને ફરી યજય શબ્દોનું ઉચ્ચારણ કર્યું". ટીકા-આને મૂલા પ્રમાણે જ છે. પણ કેટલાક વિશિષ્ટ પદોનુ સ્પષ્ટીકરણ આ પ્રમાણે છે. તે સૂયૅમ દેવના ચાર હજાર સામાજિક દવાએ યાવત્ પદ્મ ગ્રાહ્ય સપરિવાર ચાર અગ્ર મહિષીએ એ ત્રણ પરિષદાએ સાત અનીકાધિપતિઓએ તેમજ સાળ હાર આત્મરક્ષક દેવાએ અને સૂર્યાભદેવની રાજધાનીમાં રહેનારાં મધાં ટેવદેવીઓએ અતિભવ્ય ઈન્દ્રાભિષેકથી અભિષેક કર્યાં. અભિષેક કર્યો ખાદ્ય અનુક્રમે એકએક દેવે હાથેાની અંજલિ મસ્તક પર ફેરવીને આ પ્રમાણે વિનતિ કરતાં કહ્યું 1

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