Book Title: Rajprashniya Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 589
________________ सुबोधिनी टीका सू. ८५ सूर्याभस्यइन्द्राभिषेवर्णनम् पात्रीणां सुप्रतिष्ठानां बातकर काणां रत्नकरण्डकानां पुष्पचङ्गेरीणां यावत् लोगहस्तचङ्ग गई पुष्पपटलकानों यावत् लोमहरूलपटलकानां सिंहासनानों छत्राणां चामराणां तैलस मुद्गानां यावत् अञ्जनस मुद्गानां ध्वजानाम्, अप्टसहस्रं धूपकटुच्छुकानां विकुर्वन्ति, विकृत्य तान्न स्वाभाविकांश्च वैक्रियांश्च कल शांश्च यावत् कटुच्छुकांश्च गृह्णन्ति, गृहीत्या सूर्याभाद् विमानात् प्रतिनि१००८रुप्यमणिमयकलशो को, १००८ सुवर्णरूप्य एवं मणिमय कलशों को, १००८ मृतिका के कलशो को (एवं भिगाराम आयसाण थालाग पाईण' सुपट्टाम) १००८ भृगारों को आदशों को, स्थालों को, पात्रों को, सुप्रतिष्ठानों को, वायकरगाण) १००८ बातकरकोंको (रयणकरण्डगाणपुप्फ. चंगेरीण जाव लोमहत्थचंगेरीण) १००८ रत्नकरण्डको सो. पुष्पचंगेरिकाओं को यावत् लोमहस्तचंगेरिकाओं को (पुप्फपडलगाण जाव लोमहत्थपडलगाण सीहासणाण छत्ताण चामराण तेलममुग्गाण जाव अंजणसमुग्गाण), पुष्पपटलकों को, सिंहासन के, यावत् छत्रों को. तेल समुद्गकों को यावत् अंजनममु द्गकों को (झयाण अहमहस्स धूवकडच्छुयाण विउव्वंति) १००८ ध्वजाओं को और १००८ धूपकटुच्छुकों को अपनी विक्रिया शक्ति से उत्पन्न किया (विउवित्ता ते सामाबिए य वे उधिए य कलसे य जाव कडच्छुए य गिण्हंति) उत्पन्न करके फिर उन्होंने उन स्वाभाविक एवं विक्रियाजन्य. कलशों को यावत् धूपकडुच्छुकों को अपने हाथों से लिया (गिमिहत्तो सरि વ્યમય કળશે, ૧૦૦૮ સુવર્ણ અને મણિઓના કળશને, ૧૦૦૮ રુખ્ય મણિમય કળશને ૧૦૦૮ સુવર્ણરુખ્ય અને મણિમય કલશને ૧૦૦૮ भाटीना शाने (एवं भिंगागण आयंसाण थालाणं पाईणं सुपडठ्ठाणं) १००८ माने, सादृश (५)ने, स्थासोने, पात्रोने, सुप्रतिष्ठानाने (वायकरगाणं) १००८ पात:२छाने, (स्यण करण्ड गाण, पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीण) १००८ २ल ४२ होने पु०५ यगेरियाने यावत् समस्त योरिमाने (पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं सीहासणाण छत्ताणं चामराणं तेल समुग्गाणं जाव' अंजणसमुगाणं) पुषयमाने यावत् सोम डरत पसीने, सिंडासनाने, छोन यामशेने, तेससभुगीने यावतू मन सभुगने, (झयाण अट्ठसहस्सं धूवकडच्छुयाणं विउच्च ति) १००८ नम्गाने भने १००८ ५५ ४९२छुडाने पोतानी या शति43 Sपन्न या. (विउवित्ता ते साभाविए य वेउव्विए य कलसे य जाय कडछुर य गिण्हति) उत्पन्न शन पछी तेभो તે સ્વભાવિક તેમજ વિકિયા જન્ય કળશોને યાવત ધૂપ કહુછુકને પિતાપિતાના હાથમાં

Loading...

Page Navigation
1 ... 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721