Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 14
________________ प्रस्तावना पर है (पृ० ८२)। १५वी कथामें पद्मचरितका स्पष्ट उल्लेख है (पृ. ८२)। यहां जो कीचड़में फंसे हुए हाथोको एक विद्याधर-द्वारा दिये गये पंच-नमोकार मन्त्रका और उसके प्रभावसे हाथोके नामकी पत्नी सीताका जन्म धारण करने व स्वयंवर आदिका वर्णन आया है उससे रविषेण कृत पद्मचरित, पर्व १०६ आदिका अभिप्राय स्पष्ट है। ७वों और ४३वी कथाओंमें आदिपुराणका ( और ४३वीं में महापुराणका भो, पृ० २९, २३८, २८२ ) उल्लेख है, जिससे उनके मूलस्रोतका पता जिनसेन कृत आदिपुराण पर्व ६, १०५ आदि एवं पर्व ४, १३३ आदिमे चल जाता है । और भी अनेक कथाओंके सूत्र उसी महापुराणमें पाये जाते हैं । जैसे - पुण्य० कथा महापुराण ४६-२५६ आदि ४५-१५३ आदि ७३ (विशेषतः पद्य ९८ आदि ) ४६-२६८ आदि २६-२७ ४७-२५९ आदि २८ ४६-२९७ आदि ४६-३४८ आदि ७१-३८४ आदि ७२-४१५ आदि ७१-४२९ आदि ७१-४२ आदि इनसे स्पष्ट है कि पुण्यानवकारने अपने अनेक प्रसंगोंपर महापुराणका उपयोग किया है। आठवों कथा राजा श्रेणिककी है जिसमें कहा गया है कि वह भ्राजिष्णु ( ? ) कृत आराधनाको कर्नाट टीकासे संक्षेपतः ली गयी है। प्रोफेसर डी० एल० नरसिंहाचारका अनुमान है कि यहाँ अभिप्राय कन्नड वड्डाराधनासे हो सकता है। किन्तु उसके उपलभ्य संस्करणमें श्रेणिकको कथा नहीं पायी जाती। यह कथा बृहत्कथाकोश (५५) में हैं। विशेष अनुसन्धान किये जाने की आवश्यकता है। सम्भव है पुण्याश्रवकारके सम्मुख कन्नड वडाराधना भी रही हो, तथा और भी अन्य प्राकृत रचनाएं। इसके प्रमाणमें कुछ प्रसंगोंपर ध्यान दिया जा सकता है। प्राकृत उद्धरण 'पेच्छह' आदि कन्नड वड्डाराधना ( पृ ७९ ) में भी है और पुण्यास्रव ( पृ० २२३ ) में भी । उसोके आस-पासको कुछ अन्य बातोंमें भी समानता है । वड्डाराधनाके अगले पृष्ठपर "बोलह, बोलह" आदि उक्तियाँ हैं जो पुण्यास्रव (पृ. २२३ ) के पाठसे मेल खाती हैं । और भी ऐसे समान प्रसंग खोजे जा सकते है। किन्तु जबतक वडाराधनाके समस्त स्रोतोंका पता न चल जाये, तबतक साक्षात् या परोक्ष अनुकरणका प्रश्न हल नहीं किया जा सकता। १२-१३वीं कथाएँ चारुदत्त-चरित्रसे ली कही गयी हैं (पृ० ६५)। कहा नहीं जा सकता कि यहाँ अभिप्राय उस नामके किसी स्वतन्त्र ग्रन्थसे है, या अनेक ग्रन्थों में प्रसंग-वश वणित चरित्रसे। चारुदत्तकी कथा हरिषेण कृत बृहत्कथाकोश (पृ०६५) में भी आयी है, और उससे भी प्राचीन जिनसेन कृत हरिवंशपुराणमें भी। “अक्षरस्यापि" आदि अवतरण ( पृ० ७४) हरिवंश २१-१५६ से अभिन्न है। इससे स्पष्ट है कि इस कथाको लिखते समय पुण्यास्रवकारके सम्मुख जिनसेनकृत हरिवंशपुराण रहा है । २१-२२वीं कथाओंमें उनका आधार सुकुमार-चरित कहा गया है। किन्तु इस ग्रन्थके विषयमें विशेष कुछ ज्ञात नहीं है। तथापि इस कथाका बृहत्कथाकोशको १२६वीं कथा ( पद्य ५३ आदि ) से तुलना को जा सकती है। कन्नड़में एक शान्तिनाथ ( ई० १०६०) कृत सुकुमारचरित है ( कर्नाटक संघ, शिमोग, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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