Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ (५) णी रे ॥ ते ध्याता निज श्रातमा, होये सिझ गुण खाणी रे ॥ वी० ॥३॥ इति सिझपदपूजा समाप्ता॥ ॥ तृतीय श्राचार्यपद पूजा प्रारंजः ॥ ॥ काव्यं, इंजवज्रावृत्तम् ॥ सूरीणदूरीकयकुग्गहाणं नमो नमो सूरसमप्पहाणं ॥ ॥जुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ नमूं सूरिराजा सदा तत्त्व ताजा, जिनेमागमें प्रौढ साम्राज्यनाजा ॥ षड्वर्गवर्गित गुणे शोनमाना,पंचाचारने पालवे सावधाना ॥ १॥ नविप्राणिने देशना देश काले, सदा अप्रमत्ता यथासूत्र श्राले ॥ जिके शासनाधार दिग्दंतिकल्पा, जगें ते चिरंजीवजो शुद्धजल्पा ॥२॥ ॥ढाल॥उलालानी देशी॥याचारिजमुनिपति गुणी, गुणबत्रीशी धामो जी ॥ चिदानंदरस खादता, परनावें निःकामो जी॥१॥ उलालो ॥ निःकाम निर्मल शुभचिद्घन, साध्यनिज निरधारथी ॥ निज ज्ञान दर्शन चरण वीरज, साधनाव्यापारथी॥ नवि जीव बोधक तत्त्वशोधक, सयलगुण संपति धरा॥संवरसमाधी गतउपाधी, पुविध तपगुण श्रागरा ॥२॥ ॥पूजा ॥ ढाल ॥श्रीपालना रासनी देशी॥ पंच थाचार जे सूधा पाले, मारग नांखे साचो ॥ ते श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 96