Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 59
________________ (५५) मुफ कर सनाथ, तज्यो कुगुरु साथ, मुफ पकड हाथ, दीनाके नाथ, जिनवच रस पीनो ॥ श्रा० ॥४॥ श्रातम श्रानंद, तुम चरण वंद, सब कटत फंद, जयो शिशिर चंद,जिन पठित बंद ॥ ध्वजपूजन कीनो॥श्रा॥५॥ए पढकें ध्वज चढावे ॥इति ॥५॥ ॥अथ दशमी बाजरण पूजा प्रारंजः॥ ॥ पीरोजा, नीलम,लसणीया, हीरा,माणेक, पन्ना प्रमुखसे जडे रत्नाचरण लेमुखसे इस मुजब पढे. ॥ दोहा ॥ शोजित जिनवर मस्तकें, रयण मुकुट जलकंत ॥ नाल तिलक अंगद नुजा, कुंमल अति चमकंत ॥१॥सुरपति जिन अंगें रचे,रत्नाजरण विशाल॥तिम श्रावक पूजा करे, कटे करम जंजाल ॥२॥ ॥ढाल॥अंग्रेजी बाजेकी चाल॥यानंद कंद पूजता, जिनंद चंद हुँ॥ए आंकणी॥मोति ज्योति लाल हीर, हंस अंक ज्यु ॥ कुंमलू सुधारकरण, मुकुट धार तुं ॥ श्रा ॥१॥ सूर चंद कुंमलें, शोनित कान छ॥ अंगद कंठ कंठलो, मुणिंद तार तुं॥श्रा॥२॥ जाल तिलक चंगरंग,खंगचंग ज्यु ॥चमक दमक नंदनी, कंदब जीत तुं॥आ॥३॥व्यवहार जाष्य जाखियो, जिनंद बिंब यु ॥ करे सिंगार फार कर्म, जार जार तुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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