Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 86
________________ (२) शांति ॥ १॥ कामित पूरण कामधेन, मद मोह के चूरण ठाम फेन ॥ लीये मनको अति आराम चेन, गुंजे अति जिनो रे ॥ शांतिः ॥२॥ कपूर कहे जिन पदकुं एन, उर धारो नवि तार लेन ॥होय मुक्ति सेज परसार सेन, आगम कहि दीनो रे ॥शां॥३॥ ॥अथ जिनस्तवनं ॥ ॥राग नेरवी ॥ पांच वरणनी आंगी राची, कुसुमनी जाती ॥ पांच ॥ ए आंकणी ॥ कुंद मचकुंद गुलाल शिरोवर, कर करणी सोवन जाती॥ पांच० ॥१॥ दमनक मरुव पागल अरविंदो, अंश जुश् बेउल बाती ॥ पांच० ॥२॥पारधी चरण कव्हार मंदारो, वर्ण पटकुल बनी जाती ॥ पांच० ॥३॥ सुर नर किन्नर रमणी गाती, नेरव कुगति पुत जाती ॥ पांच ॥४॥ ॥अथ महावीरजिनस्तवनं ॥ ॥राग तुमरी ॥ महावीर तोरे समवसरणकी रे ॥ महा ॥ हुँ जाउं बलिहारी वारी रे ॥ ए आंकणी॥त्रण गढ उपर रे, तखत बीराजे रे, वाणी जन जोजन सारी॥ हुँ जाउं बलिहारी वारी रे॥हुं॥ महावीर तोरे ॥ सम॥१॥ देशना अमृत रे, धा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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