Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(1) ॥ एदेशी ॥ नवि तुमें सुणजो रे, गुरु मुख मधुरी वाणी॥ दिलमां धरजो रे, समता रसगुणखाणी ॥ ए
आंकणी ॥ पंजाब देशमां जन्म लियो गुरु, बालपणे व्रत लीधां ॥ व्याकरणालंकार जणीने, उर्मत दूर की धा ॥ नवि० ॥१॥ नाम समान गुणे शोनंता, सुमति गुप्तिना धारी॥श्रातम निजपद ध्यानमां लीना, जीना जिन गुणक्यारी ॥ नविण ॥२॥आगम अनुसारी किरियामां, अप्रमत्त गुरुराया ॥ तृष्णा तरुणीथी मन ताणी, संयम तान लगाया ॥ नवि० ॥३॥ गाम नगर पुर देश विदेशें, विचरंता व्रतधारी ॥बहु जनने प्रतिबोध दश्ने,धर्मति दूर निवारी॥नविणा॥ संशय शत्रु नयंकर वारी, जयश्री निर्नय कीधा॥ स्यादमत तत्वखरूप बतावी,लोचन अमनेदीधजिविण ॥५॥ कुमत वादलां दूर निवारी,कीधोहम सुपसाय ॥ फलहल दीवडा जिनवाणीना, प्रगटाया गुरुराय ॥ नवि० ॥६॥ एह उपगार तुमारो कहो गुरु, विसास्यो किम जाय ॥ स्मरण करी उपकारी तणा सहु, गुण गातां मुख जाय ॥ ज०॥७॥ज्ञान
ना गुण गातां,ज्ञानी गुणथी जरीया॥शांतिविजयकहे गुरु गुण दरीया,केम तराये तरीया॥०॥॥
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