Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 94
________________ (ए) वत उगणीशे दश मांही, उज्ज्वल कार्तिक मासें रे ॥ पंचमीने दिवसें लिये दीदा, जीवणराम गुरुपासें रे ॥ ज० ॥ ७॥ ज्ञान नण्या वली देश फस्या बहु, जूनां शास्त्र विलोकी रे ॥ संशय पडिया गुरुने पूजे, प्रतिमा केम उवेखी रे ॥ ज० ॥॥ उत्तर न मिल्या जब गुरुजीने,झानकला घट जागी रे॥ सुमतासखी घट आण वसी जब, ढूंढपंथ दिया त्यागी रे ॥ज ॥ए ॥ धर्म शिरोमणि देश मनोहर,गुर्जर नूमि र. साली रे॥ज्यां श्रावी सुविहित गुरु पासें, मन शंका सहु टाली रे ॥ ज० ॥ १० ॥ परम कस्यो उपगार तुमें बहु,श्रीगुरु आतमराया रे ॥ जयवंता वर्तो था जरतें, दिन दिन तेज सवाया रे ॥०॥१९॥ सुषम काल समे गुरुजी तुमें, वचन दीवडा दीधा रे॥ शांतिविजय कहे जेथी हमारां, विषम काम पण सिकां रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ इति ॥ ॥अथ गहूली जाग बीजो ॥ ॥ देशी पहेला प्रमाणे ॥ कहां गया रे मारे सुगुरु सनेही,रत्नत्रयीना धारी रे॥ज्ञान अपूरव दान दश्गुरु जडता दूर निवारीरे ॥कहां॥॥संवत उंगणीशे बत्री शें,राजनगर मोकार संजम लीया सुविहित गुरु पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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