Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 85
________________ (१) हो रे॥श्राज ॥१॥ तुम विन देव अवर नहि दूजो, देख्या त्रिजुवन जोरे ॥ श्रा॥२॥ दास तुमारो करत विनति, तुम विन अवर न कोई रे॥ ॥राग खमाच ॥ श्रीवीतरागको दरस देख, दुविधा मेरी मिट गरे ॥ श्रीवीतरागण॥ ए श्रांकणी॥श्रष्ठजव्य लइ पूजन आयो, मनमें श्रानंद ठर्ष वधायो ॥ में जिन वाणी कान सुणी, उर्गत मेरी मीट गरे ॥ श्रीवी० ॥१॥ रसना सफल नश्अ. ब मेरी, जक्ति उच्चार करी प्रजु तेरी॥अब पाश्थानंदकी घटा, तृष्णा नेरी मीट गरे॥ श्रीवी॥२॥ अब में जन्म कृतार्थ मान्यो, गोपद तुल्य नवोदधि जान्यो ॥ अब पाश्मुक्तितणी मगर, कलिमल मेरी मीट गरे श्रीवी० ॥३॥ जब लग मुक्ति न आवे नेरे, तब लग नक्ति वसो उर मेरे ॥ तेरी बबी चंदनके हृदे, तन मनसे लिपट रही रे ॥ श्री० ॥ ४॥ ॥अथ शांतिजिनस्तवनं ॥ ॥राग खमाच ॥ शांति वदन कज,देख नेन मधुकर मन तीनो रे ॥ शांति ॥ ए आंकणी ॥ श्री जिनके मकरंद वेन,विरमी नव उर्गंध घन ॥ शिव पुरके सदा सुख कंददेन, समकित रस जीनो रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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