Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(७०) राजा सब काजा, आनंद रसकों पी रहीयें ॥ १३ ॥
॥अथधर्म जिनस्तवनं॥ ॥राग नेरवी ॥क्युं विसरो रे सुझानी जिनंदपद ॥ क्युं विसरो रे॥ए श्रांकणी ॥ मनवच तनकर पदकज सेवो, लूंगपरें लपटानी ॥जि॥१॥ मूगति सुरति त्रिजुवन मोहे, शांत सुधारस दानी ॥ जि०॥२॥ धर्मनाथ जिन धर्मके धोरी, कर्मकलंक मिटानी ॥ जि० ॥३॥ नगर नकोदर बिंब बिराजे, कर दर्शन सुख मानी ॥ जिम्॥४॥ आतम अनुजव रस दे त्राता, वेगां वरं शिव राणी ॥जि॥५॥
॥अथ झषन जिनस्तवनं ॥ ॥राग नेरवी ॥ लागी लगन कहो केसे बूटे, प्राणजीवन प्रनु प्यारेसें ॥ लागी० ॥ ए श्रांकणी ॥ निर्मल नीरकमल सरोवरमें, भ्रमर रहत नहिं वारे सें ॥ लागो ॥१॥ चंद चकोर नये मगनमें, चकवी जग चक तारेसें ॥लागी० ॥२॥राजसिंह नवलो नेह लाग्यो, नायक नाजि फुलारेसें ॥लागी०॥
॥राग नेरवी ॥ आज प्रनु तेरे चरणे लाग्यो, मिथ्या निंद सब खोरे ॥आज ॥ ए श्रांकणी॥ दर्शन कर परसन मन मेरो, आनंद चित्त अब
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96