Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 82
________________ ( उ ) ॥ ८ ॥ बडीवारे तुमरे द्वारें श्राया जी ॥ म्हारा० ॥ करुणासिंधु जगमें नाम धराया जी ॥ म्हारा० ॥ षज० ॥ ९ ॥ मन मर्कटकुं शिखो निजघर आवे जी || म्हारा० ॥ सघली वातें समता रंग रंगावे जी ॥ म्हारा० ॥ रुषज० ॥ १० ॥ अनुभव रंग रंगीला ॥ समता संगें जी ॥ म्हारा० ॥ श्रतमताजा अनुजव राजा रंगें जी ॥ म्हारा० ॥ रुषज० ॥ ११ ॥ ॥ अथ श्री सिद्धाचल मंगन रुषजदेवनुं स्तवन ॥ ॥ राग मराठी में ॥ कषन जिनंद विमल गिरि मंमन, मंगन धर्मधुरा कहीयें ॥ तुं कल सरूपी जारके करम, नरम निजगुण लहीयें ॥ कषन ॥ १ ॥ अजर अमर प्रभु अलख निरंजन, जंजन समर समर कहीयें ॥ तुं श्रद्भुत योद्धा मार कें, करम धार जग जश लही यें ॥ रुषज० ॥ २ ॥ अव्यय विनु ईश जगरंजन, रूप रेखा बिन तुं कहीयें ॥ शिव चर नंगी तारकें, जगजन निज सत्ता लहीयें ॥ रुष - ज० ॥ ३ ॥ शतसुत माता सुता सुदंकर, जगत जयंकर तुं कहीयें ॥ निजजन सब तारयो इमोसें, अंतर रखनां ना चहियें ॥ रुषज० ॥ ३ ॥ मुखडा जींचके बेसी रहेनां, दीन दयालको ना चहियें ॥ हम तन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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