Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(७६)
॥ अथ कलश ॥ ॥राग धन्याश्री॥ पूजन करो रे आनंदी, जिनंद पद पूजन करो रे॥श्रा०॥ ए श्रांकणी ॥ अष्टप्रकारी जनहित कारी, पूजन सुरतरु कंदी ॥जि॥१॥ श्रावक अव्यनाव करे अर्चन, मुनिजन नाव सुरंगी॥जि० ॥ ५ ॥ गणधर सुरगुरु सुरपति सगरे, जिनगुण कोन कहंदी ॥ जि ॥३॥ में मतिमंदही बाल रमण ज्युं, जिनगुण कथन करंदी ॥जि॥४॥ तप गह मुनिपति विजय सिंहवर, सत्य विजय गणि नंदी ॥ जि० ॥५॥ कपूर क्षमा जिनोत्तम सद्गुरु पद्मरूप सुखकंदी ॥ जि० ॥ ६॥ कीर्ति विजय कस्तूर सुहंकर, मणी विजय पद वंदी ॥ जि ॥७॥ श्री गुरु बुधिविजय महाराजा, कुमति कुपंथ निकंदी ॥ जि० ॥॥ शिखि जुग अंक छ (रए४३) शुनवर्षे, पालिताणा सुरंगी ॥ जि॥ ए॥ विमलाचल मंगन पद नेटी, तन मन अधिक उमंगी॥ जि ॥ १० ॥ आतमराम श्रानंद रस पीनो, जिन पूजत शिवसंगी ॥ जि० ॥११॥ इति ॥ इति श्रीमदात्माराम (आनंदविजयजी) महाराज विरचित अष्टप्रकारी पूजा समाप्ता ॥
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