Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( ४ )
तोरे चरण सरकी रे || जिनंदा० ॥ ए आंकणी ॥ ॥ १ ॥ वीणा रंग राजे रे, मृदंग ध्वनि गाजे रे, वाजे वा जितर जारी ॥ मिल अर्चन जन शृंगारी, श्राये जिनमंदिर शुजकारी ॥ जिनंदा० ॥२॥ जविजन पूजो रे, जगमें देव न दूजो रे, धूजे जिम करम कगरी ॥ मायुं पद आणाहारी, ज्युं वेगें वरुं शिवनारी ॥ जिनं० ॥ ३ ॥ पूजा फल ताजा रे, हालीजन राजा रे, आतमकों आनंदकारी ॥ जव जांति मिट गइ सारी, जिन अर्चनकी बलिहारी ॥ जि० ॥ ४ ॥ ॥ काव्यम् ॥ मंत्रः ॥ ॐ श्री परम० ॥ जिनेंद्वाय नैवेद्यं यजा० ॥ इति ॥ ७ ॥
॥ थाष्टमफलपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ष्ट करमके हरनको, श्रामि पूजा सार ॥ अडगुण आतम परगटे, फल पूजन फलकार ॥
॥ राग ठुमरी ॥ महावीर चरण में जाय, मेरो मन लाग रह्यो । महा० ॥ ए देशी ॥ मेरो मन रंग रेंह्यो, फल अर्चन में सुखदाय ॥ मेरो० ॥ ए यांकणी ॥ श्रीफल पूगी पिस्ता बदामा, प्राख अखोड मिलाय ॥ मेरो० ॥ १ ॥ खारक मीठे अंब नारंगी, कदली सीताफल लाय || मेरो० ॥ २ ॥ द्वाख आलूचां फनस
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96