Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 76
________________ (७२) म अन्न अखंमित,आदि ले ढिग पूज करो रे॥श्रदत पूजा करी मन रंगें, अदत सुख नंमार जरो रे ॥ तुम॥२॥ तम अनुजव रत्न सुरंगो, चिंतामणि सुरपुम खरो रे॥ अत पूजासें नवि प्रगटे, जिनवर नक्ति हृदयमें धरो रे ॥ तुम ॥३॥ __॥दोहा ॥ शुद्धादत्त तंडुल ग्रही, नंदावर्त्त विधान ॥ जिन सन्मुख होय पूजिये, जरे करमसंतान ॥१॥ ॥अथ गीतं ॥राग मराठी में ॥ अरिहंत पद अ. र्चन करी चेतन, जिन सरूपमें रम रहीयें ॥ निज सत्ता प्रगटे जारकें, करम नरम निज सुख लहिये। अरिहंत ॥ ए आंकणी॥१॥ तुं निज अचल ईश विजुचिद्घन, रंग रूप विण तुं कहीयें ॥अज अच. ल निराशी, शिवशंकर अघहर जग महीयें।अरिहं० ॥॥अव्यय विनु निरंजन स्वामी, त्रिजुवन रामी तुं कहीयें ॥ सब तेरी विजूति, अक्षत अर्चनसे ऊट लहियें॥अरिहं ॥३॥मरुदेवी नंदन चरणसुहंकर, कीर जुगल अदत गहीयें ॥ करि अर्चन सुरनर, अं तमें परमात्मपद रस वहीयें ॥अरि॥४॥ ॥ काव्यम् ॥ मंत्रः ॥ ॐ ही श्री परमणा जिनें. प्राय अवतान् यजामहे स्वाहा ॥ इति ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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