Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 79
________________ (५) संतरां, अंगुर जंबीर सुदाय ॥ मेरो ॥३॥ तरबूजां खरबूज सिंगोडां, सेव अनार गिनाय ॥ मेरो ॥४॥ इत्यादि शुज फल रस चंगें, कंचन थाल जराय ॥ मेरो० ॥५॥ फलसें पूजा अर्हन् केरी, आतम शिव फल थाय ॥ मेरो ॥६॥ ॥ दोहा ॥ सादिक जिम फल करी, पूजे श्री अरिहंत ॥ तिम श्रावक पूजन करे, फल वरे सादि अनंत ॥१॥ ॥अथ गीतं ॥ रेखता॥ जिनवर पूज सुखकंदा, नसे अड कर्मका धंदा ॥ सुंदर नरि थाल रतनंदा, जिनालये पूज जिनचंदा ॥जिन॥१॥ए आंकणी॥ विविध फल साररस चंगा, अपुनरावृत्ति फल मंगा॥ अड दिहि संपदा रंगा, बुद्धि सिझी शिव वधू संगा ॥ जि ॥२॥पूजे जवि नावणुं रंगा, करी अडकमशुं जंगा॥करी शुध रूप अनंगा,उतरी अनादिकी नंगा ॥ जि०॥३॥ कीरयुग पुगता तंगा, करी फल पूजना मंगा॥आतम शिवराज अजंगा, विमल अति नीर जिम गंगा ॥ जिन॥४॥ ॥काव्यम् ॥ मंत्रः॥ ही श्री परम जिनेंडा. य फलं यजा ॥ इति ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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