Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ (७०) ॥ काव्यम् ॥ मंत्रः॥ ॐ झी श्री परम जिनेंडा य धूपं यजामहे वाहा ॥ इति ॥४॥ ॥अथ पंचम दीपक पूजा प्रारंजः॥ ॥ दोहा ॥ पंचमि पूजा जिन तणी, पंचमि गति दातार ॥दीपकसे प्रनु पूजिये, पामियें केवल सार॥ ॥राग सिंध काफी॥पूजो अरिहंत रंगे रे, नवि नाव सुरंगें ॥पूजो० ॥ ए आंकणी॥ दीपक ज्योति बनी नवरंगी, जिनजीके दाहीण अंग ॥ रयण जडित चमकत शुजरंगें, गोघृत जरी अति चंगरे ॥नवि ॥१॥ करुणा रससे धरी शुल फानस, मरत न जेम पतंग ॥ जगमग ज्योती सुंदर दीपे, अनुजव दीप अग्नंग रे॥नवि० ॥२॥ जिन मंदिरमें दीप प्रगट करी, जावना शुरू मन रंग ॥ ध्यान विमल करतां अघ नासे,मिथ्या मोह नुजंग रे॥नवि॥३॥दीप दरससे तस्कर नासे,श्रातम तिमिर उत्तंगातिम जिन पूजित मिले चित्त दीपक, जरत हे समरपतंग रे॥न॥ ॥दोहा॥ अव्य दीपक विनावरी,तिमिर करे सब दूर ॥ नाव दीपक जिन नक्तिसें,प्रगटे केवल सूर॥९॥ ॥अथ गीतं ॥ राग भैरवी ॥ दीप जयंकर चिद्घ न संगी, केवल जगत प्रकाशे रे॥ ए आंकणी ॥ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96