Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 72
________________ (६७) प्रनु जिनवरचंद ॥जि॥॥विषयि देवकों श्राक धत्तुरा, पूजे नरवायस मतिमंद ॥जि॥३॥ वणिक धुश्रा लीलावती पूजी,फूलें जिनवर हरि जव फंद॥जि॥४॥ आतम चिघन सहजविलासी, पामी सचित् पद महानंद ॥ जि ॥५॥ ॥अथ काव्यं ॥ मंत्रः ॥ श्री श्री परम ॥ जिनेसाय पुष्पं यजामहे वाहा॥इति तृतीयपूजा ॥३॥ ॥अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंजः ॥ ॥ दोहा ॥ कर्मेधनके दहनकों, ध्यानानल करि चंग ॥ अव्य धूप करि श्रातमा, सहज सुगंधित मंम॥ ॥राग पीलू ॥अथवा बरवा ॥ धूप पूजा अघ चूरे रे नविका,धूप पूजा अघ चूरे ॥ एतो जव जयनासत दरें रे ॥ ज०॥ ए आंकणी ॥ कृष्णागर अंबर घ. नसारे, तगर कपूर सनूरे॥ कुंदरु मृगमदतुरक सुगंधि, चंदन अगर सचूरे रे॥ नविका॥१॥ए सब चूरण करी मनरंगें, नंगे करम अंकूरे ॥ नव नव रंगी शुकदशांगी, जिनवर श्रागें अदूरे रे ॥ नविका॥२॥ धूपदान कंचनमणि रत्ने, जडित घडित अति पूरे ॥ निधूम पावक अति चमकंती, जिनपतिको कर तुं रे ॥ नविका० ॥३॥ जिनवर मंदिरमें महमहती, द. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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