Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 70
________________ (६६) घसी घनसार सुधर रे ॥ कनक रतन जरी जरी रेकचोरी, मन वच तनु शुचि कर रे ॥ श्रीजि० ॥२॥ चरण जानु कर अंश शिरोपर, नालकंठ प्रजु उर रे॥ उदर तिलक नव कर जिनवरके, आतम आनंद जर रे ॥ श्रीजि० ॥३॥ ॥ दोहा ॥ शीतल गुण जिनमें वसे, शीतल जिनवर अंग॥श्रातम शीतल कारणे, पूजो अरिहंतरंग॥ ॥अथ गीतं ॥ राग कसूरी जंगलो ॥ सिकि वधू लरे, जिनरंग राची॥ जिन ॥ ए श्रांकणी॥ ह. रिचंदन घनसार सुमन हर रे, अव्य तिलक नव द॥ जि ॥१॥ अचल सुरंगी सुमन गुण लूंगी रे, जावतिलक शिर ज॥ जिन॥२॥ पूजक चार तिलक करि अंगें रे, पूजे अति हरख ॥ जि॥३॥ज. यसुर शुजमति जिनवर पूजी रे, दंपती शिवपद लक्ष ॥ जि ॥ ४ ॥ आतमानंदी करम निकंदी रे, श्रानंदरस रंग ॥ जि० ॥५॥ ॥अथ काव्यं ॥ मंत्रः ॥ ॐ ही श्री परमजिनेडाय चंदनं यजामहे स्वाहा ॥ इति पूजा ॥२॥ ॥अथ तृतीय कुसुमपूजा प्रारंजः ॥ ॥ दोहा ॥ त्रीजी पूजा सुमनकी, सुमन करे ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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