Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६७) विरंग ॥ पंचबाण पीडा हरे,लावसुगंधिअनंग ॥१॥
॥राग धन्याश्री ॥ अब मावडी गिरि जान दे, मेरा नेमजीसें काम है ॥ ए देशी ॥ अब नविक जन जिन पूज ले, जिन सुधरे सघरे काम ॥ अब० ॥ ए श्रांकणी ॥ अतिही सुगंधी कुसुम लीजें, खरचीने ब हु दाम रे ॥ मोघरा चंपक मालती, केतकी पामल
आम रे ॥ अब० ॥१॥ जासुल प्रियंगु पुन्नाग ना. ग, दाउदी वरनाम रे ॥ मचकुंद कुंद चंबेलि ले,जे जगियां शुन थान रे॥ अब०॥२॥ स न जाइ जुझ, बोलसिरी शुनगम रे॥ लही कसम जिनवर देवने, पूजो जरे जिम काम रे॥अंब० ॥३॥ शुज सुमन केरी माल गुंथी, जिनगले धरी जाम रे ॥ आतम आनंद सुहंकरूं, जिम मिले शिववधूधाम रे॥
॥ दोहा ॥ सुजग अखंम कुसुम ग्रही,दूर करी सब पाप ॥ त्रिभुवन नायक पूजिये, हरे मदन संताप ॥
॥ अथ गीतं ॥ श्रीराग वा कालिंगडो ॥ मंगल पूजा सुरतरु कंद ॥ मंग ॥ ए देशी ॥ जिनवर पूजा शिवतरु कंद ॥ जिनवर ॥ ए आंकणी ॥ दमनक मरवो बकुल केवडो, सरस सुगंधित अति महकंद ॥ जि० ॥१॥ कुसुमार्चन नवि करो मन रंगे,ताप हरे
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