Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 58
________________ (५४) पूजा चह्यो री ॥ना॥६॥ यह पाठ पढकें प्रनुजीकों चूरण चढावे ॥इति अष्टम चूर्ण पूजा ॥७॥ ॥अथ नवम ध्वजपूजा प्रारंनः॥ ॥ पंच वर्णी ध्वजा, घूघरीयो सहित हेममय दंमें करी संयुक्त सधवा स्त्री मस्तकें वेश्थालमें धरि तीन प्रदक्षिणा देश् वासदेप करि ध्वजा लेइ खडी रहे. ॥दोहा॥ पंचवरण ध्वज शोजती, घूघरिनो घमकार ॥ हेमदम मन मोहनी, लघू पताका सार ॥ १॥रणऊण करती नाचती, शोजित जिनहर शृंग॥ लहके पवन ऊकोरसे, बाजत नाद अनंग ॥२॥ इंशाणी मस्तक लई,करे प्रदक्षिण सार॥ सधवा तिम विधि साचवे, पाप निवारणहार ॥३॥ __॥ढाल॥ध्रुपद ॥ श्राश्नार॥ए देशी॥श्रा सुं. दर नार,कर कर सिंगार,गढी चैत्यहार,मन मोदधार, प्रजु गुण विथार, अघ सब दय कीनो ॥ आ॥ १॥ जोजन उतंग, अति सहस चंग, गश् गगन लंघ, नवि हरख संघ ॥ सब जग उतंग, पदबिनकमेंली नो॥श्रा॥२॥ जिम ध्वज उतंग, तिम पद अनंग, जिन नक्ति रंग, जवि मुक्ति मंग, चिद्घन आनंद, समतारस नीनो ॥ आ॥३॥अब तार नाथ, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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