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( ६० ) यह पढकें प्रभुकं धूव जखेवे ॥ इति धूप पूजा ॥ १४॥ ॥ अथ पंचदश गीतपूजा प्रारंभः ॥
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॥ दोहा ॥ ग्राम जले आलापिने, गावे जिनगुण गीत | जावे शुरूज जावना, जाचे परम पुनीत ॥१॥ फल अनंत पंचाशर्के, जाखें श्रीजगदीश ॥ गीत नृत्य शुध नादसें, जो पूजे जिन ईश ॥ २ ॥ तीन ग्रामखर सातसें, मूरबना एकवीश | जिन गुण गावे जक्तिशुं, तार तीस उगणीश ॥ ३ ॥
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॥ ढाल ॥ श्रीराग ॥ जिन गुण गावत सुरसुंदरी ॥ ए यांकणी ॥ चंपकवरणी सुर मनहरणी, चंद्रमुखी श्रृंगार धरी ॥ जि० ॥ १ ॥ ताल मृदंग बंसरी मंगल, वेराड उपांग पुनि मधुरी ॥ जि० ॥ २ ॥ देव कुमार कुमारी आलापे, जिनगुण गावे जक्ति जरी ॥ जि० ॥ ॥ ३ ॥ नकुल मुकुंद वीण अति चंगी, ताल बंद - यति समरी ॥ जि० ॥ ४ ॥ अलख निरंजन ज्योति प्रकाशी, चिदानंद सत् रूप धरी ॥ जि० ॥ ५ ॥ श्रजर अमर प्रभु ईश शिवंकर, सर्व जयंकर दूर हरी ॥ जि० ॥ ६ ॥ श्रातम रूप श्रानंद घन संगी, रंगी निज गुन गीत करी ॥ जि० ॥ ७ ॥ इति ॥ १५ ॥
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