Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 63
________________ (एए) ॥अथ चतुर्दशधूपपूजा प्रारंजः ॥ धूप रकेबीमें ले के मुखसे श्समुजब पढे. ॥ दोहा ॥ मृगमद अगर सेलारस, गंधवटी घन सार ॥ कृष्णागर शुफ कुंदरू, चंदन अंबर नार॥१॥ सुरनि अव्य मिलायकें, करे दशांगज धूप ॥धूपधाणमें ले करी, पूजे त्रिजुवननूप ॥२॥ ढाल॥राग पीवु॥मेरे जिनंदकी धूपसें पूजा, कुमति कुगंधी दूर हरी रे॥मेरे॥एांकणी ॥रोगहरे करे निजगुण गंधी, दहे जंजीर कुगुरुकी बंधी ॥ निमल जाव धरे जग धंदी, मुके उतारो पार, मेरा किरतार, के अघ सब दूर करी ॥ मे ॥१॥ऊर्ध्व गति सूचक नवि केरी, परम ब्रह्म तुम नाम जपेरी॥ मिथ्यावास उखराशि फरे री, करो निरंजन नाथ, मुक्तिका साथ, के ममतामूल जरी ॥ मे ॥२॥धूपसे पूजा जिनवर केरी, मुक्तिवधू जर बिनकमें चेरी॥ अब तो क्यों प्रनु कीनी देरी, तुमही निरंजन रूप, त्रिलोकी नूप, के विपदा दूर करी ॥ मे ॥३॥ श्रातम मंगल आनंदकारी, तुमरी चरण शरण अब धारी॥ पूजे जेम हरी तेम आगारी, मंगल कमला कंद, शरदका चंद, के तामस दूर हरी ॥ मे ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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