Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 33
________________ ( २ ) माने जग त्रिहुं कालमें, मुनि कहियें तस नाम ॥ साधे शुद्धानंदता, साधु नाम अभिराम ॥ २॥ ॥ इंग्रेजी बाजानी चाल ॥ मुणिंद चंद ईश मेरे, तार तार तार ॥ ज्ञानके तरंग जंग, सात जास कार ॥ मु० ॥ १ ॥ संतके महंत मुनि, साध कृषि धार ॥ यति व्रती संजमी है, जगत्को आधार ॥ मु०॥ ॥ २ ॥ नवविध जावलोच, केश दशकार ॥ अनंग रंग जंग संग, सुमतिचंग नार ॥ मु० ॥ ३ ॥ सप्त चाली दोष टाली, लेत हे आहार ॥ सातवीश गूण धार, श्रातमा उजार ॥ मु० ॥ ४ ॥ पंचही प्रमाद के, कल्लोल लोल जार ॥ संसारनीरनिधि पोत, ज्योति ज्ञानसार ॥ मु० ॥ ५ ॥ पार करे संत अंत, कर्मका निहार ॥ ब्रह्मचर्य धार वाड, नवरंग लार ॥ मु०ि ॥ ६ ॥ वीरन साधु सेव, जिनपद सार ॥ आतम उमंग रंग, कुगुरु संग बार ॥ मु०ि ॥ ७ ॥ काव्यं ॥ ति० ॥ मंत्रः ॥ ॐ ॐ श्री परम० ॥ साधवे जला० ॥॥॥० ॥ इति सप्तम साधुपद पूजा ॥७॥ ॥ अथाष्टम ज्ञानपद पूजा प्रारंभः ॥ ॥दोहा॥ निजस्वरूपके ज्ञानसें, परसंग संगत बार ॥ ज्ञान आराधक प्राणिया, ते उतरे जव पार ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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