Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 41
________________ (३७) जारे, निदंन तप मन आनी ॥ १०॥ १॥ अर्जुन माली दृढप्रहारी, तपशुं धरे शुज ध्यानी ॥ अ० ॥ ॥२॥ लाख अग्यारह एंशी हजारह, पंच सय गिने हानी ॥०॥३॥ इतने मास उमंग तप कीनो, नंदन जिनपद वानी ॥ अ०॥४॥ संवत्सर गुणरत्न पीनो, अतीमुक्त सुख खानी ॥ १० ॥५॥ चौद सहस मुनिवरमें अधिको, धन धन्नो जिनबानी ॥ श्र० ॥६॥ कनककेतु तप शुध पद सेवी, श्रातम जिनपद दानी ॥ अ०॥७॥ काव्यम् ॥अतिश०॥ मंत्रः॥ ही श्री परम॥ तपसे जलागाय॥१४॥ ॥अथ पंचदश दानपदपूजा प्रारंजः॥ ॥दोहा॥ दानें नवसंकट मिटे, दाने आनंद पूर॥ दानें जिनवर पद लहे, सकल जयंकर चूर ॥१॥ श्र जय सुपातर दान दे, निस्तरिया संसार ॥ मेघ सुमुख वसुमति धना, कहत न आवे पार ॥२॥ रच्यो सिरि वृंदावन, रास तो गोविंद रच्यो ॥ ए देशी ॥ राग जंगलो ॥ दानतो अनंग दीजें,मन धरी रंग ॥ दान तो॥ ए आंकणी ॥खान तो अमर अज, सुख तो अनंग ॥ गौतम रतनसम, पात्र सुरंग ॥ दान तो ॥१॥ कनक समान मुनि, पात्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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