Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४६) बातम अनुजव रसमें नीनो, नव समुज तरता ॥ क॥ ५ ॥ यह पूजा पढके पंचामृत तथा तीर्थ जलसे नगवानकू स्नान करावे ॥ इति ॥१॥
॥ श्रथ द्वितीय विलेपन पूजा प्रारंजः॥ . ॥ दोहा ॥ गात्र बुही मन रंगशु, महके अतिही सुवास ॥ गंधकषायी वसनशु, सकल फले मन श्राश ॥१॥चंदन मृगमद कुंकुमें, नेली मांहे बरास ॥ रतन जमित कचोलीयें, करी कुमतिनो नाश ॥२॥ पग जानू कर खंधमें, मस्तक जिनवर अंग ॥ नाल कंठ उर उदरमें, करे तिलक अति चंग ॥३॥ पू. जक जन निज अंगमें, रचे तिलक शुज चार ॥ जाल कंठ उर उदरमें, तप्त मिटावनहार ॥४॥
॥ढाल ॥तुमरी॥मधुबनमें मेरे सावरीया ॥ए देशी॥करी विलेपन जिनवर अंगें,जन्म सफल नविजन माने ॥ कम् ॥१॥ मृगमद चंदन कुंकुम घोली, नव अंग तिलक करी थाने ॥ कम् ॥२॥चक्री नवनिधि संपद प्रगटे, करम नरम सब दय जाने ॥ क० ॥३॥ मन तनु शीतल सब अघ टारी, जिननक्ति मन तनुगने॥॥॥ चौसठ सुरपति सुर गिरिरंगें, करी विलेपन धन माने ॥क० ॥ ५॥ जागी ना
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