Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 51
________________ (४७) ग्यदशा अब मेरी, जिनवर बचन हदे गने ॥ क॥ ॥६॥परम शिशिरता प्रनु तन करता, चितसुख श्रधिके प्रगटाने ॥॥॥श्रात्मानंदी जिनवर पूजी, शुकवरूप निज घट थानेकाजा यह पढकें विलेपन कीजें, प्रजुकुं नव अंगें टीकी दीजें ॥इति ॥२॥ ॥अथ तृतीय वस्त्रयुगलपूजा प्रारंजः॥ ॥अत्यंत कोमल चंदन चर्चित उज्ज्वल वस्त्रयुगल, रकेबीमें ले कर, एक श्रावक खडा रहे, ओर मुखसे इस मुजब पढे सो लिखते हैं। ॥दोहा॥ वसन युगल अति उज्ज्वलें,निर्मल श्रतिही अनंग ॥नेत्रयुगल सूरी कहे, येही मतांतर संग १॥ कोमल चंदन चरचरियें, कनक खचित वरचंग ॥ हय पल्लव शुचि प्रनु शिरें, पहेरावे मन रंग ॥॥ौपदि शक सुरियान ते, पूजे जिम जिनचंद॥ श्रावक तिम पूजन करे, प्रगटे परमानंद ॥३॥ पाय लुहण अंग लूहणां, दीजें पूजन काज ॥ सकल करम मल दय करी, पामे अविचल राज ॥४॥ ॥ढाल॥राग देश सोरठ ॥ कुबजाने जादू माराए देशी॥जिनदर्शन मोहनगारा, जिने पाप कलंक पखारा ॥जिनाए आंकणी॥ पूजा वस्त्रयुगल शुचिसंगें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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