Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(४) गी ॥ विं० ॥ ५॥ श्री गुरु बुझिविजय महाराजा, मुक्तिविजयगणि चंगी ॥ वि० ॥६॥ तस लघु जाता आनंदविजयो, गाय विंशति पद नंगी।विगा ॥७॥खंयुग अंक छ (१ए४०) वत्सरमें, वींकानेर सुरंगी ॥ विंग ॥ ॥ श्रआत्माराम आनंद पद पूजो, मन तन होय एक रंगी॥ विं०॥ ए ॥ इति कलश संपूर्ण ॥ इति मुनिराज श्रीवात्मारामजी आनंद वि. जयजीकृत विंशति स्थानकपदपूजा समाप्ता ॥
॥अथ ॥ न्यायांनोनिधि महाराज श्रीश्रात्मारामजी
श्रानंद विजयजी कृत
॥ सत्तर नेदी पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ सकल जिणंद मुणिंदनी, पूजा सतर प्रकार ॥ श्रावक शुरू नावें करे, पामे नवनो पार ॥१॥ ज्ञाता अंगें जौपदी, पूजे श्री जिनराज ॥ रायपसेणि उपांगमें, हित सुख शिवफल ताज ॥२॥ न्हवण विलेपन वस्त्रयुग, वास फूल वरमाल ॥ वरण चुन्न ध्वज शोजती, रत्नाजरण रसाल ॥३॥ सु
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96