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(३५) ॥५॥ विजयशेठ विजया गुणवंती, सुदर्शन काम कख ॥ श्याम ॥५॥ दशमे अंगें बत्रीश उपमा, ब्रह्मचर्यकी दख री॥श्याम ॥६॥ श्रातम चंडवर्म नरवर ज्यु, अरिहंत पद सुख अख री॥ श्याम ॥७॥ काव्यम् ॥ अतिशया ॥ मंत्रः ॥ ॐ ही श्री परम ॥ ब्रह्मचर्याय जला ॥ यजाम ॥इति॥१॥
॥अथ त्रयोदश क्रियापद पूजा प्रारंजः॥ ॥दोहा॥चिद् विलास रस रंगमें,करे क्रियानवि चंग ॥ करम निकंदन यश नरे, उबले ज्ञान तरंग ॥१॥ आगम अनुसारी क्रिया,जिनशासन आधार ॥प्रवर ज्ञान दर्शन लहे, शिवरमणी जरतार ॥२॥
॥ फलवर्षी पारसनाथ, प्रज्जुकों पूजो तो सही॥ ए देशी ॥ राग माढ ॥ थारी गरे अनादि निंद, जरा ट्रक जोवो तो सही ॥ जोवो तो सही मेरा चेतन जोवो तो सही ॥थारी० ॥ ए श्रांकणी ॥ ज्ञान संग किरिया पुःखहरणी,जोवो तो सही ॥ मेरा चेतन नेवो तो सही ॥ एह धर्म शुक्ल शुफ ध्यान हृदयमें, प्रोवो तो सही ॥मे ॥था॥१॥श्रा रोजनी पणवीस क्रिया, खोवो तो सही ॥ मे ॥ अनुजव समरस सार जरा तुम्म, टोवो तो सही ॥
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