Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ (२७) तरु केरो कंद ॥ स्यादवाद मुख उचरे बंद, जिन व. चरस पीनो रे ॥ पा० ॥ १॥ कुमति पंथतम नाशक सूर, सुमति कंद घनवर्धन पूर ॥ दे उपदेश संत रस नूर, अघ सब दय कीनो रे ॥ पा॥२॥त्रीजे नव शिवरमणी चंग, चरण करण उपदेशक रंग ॥ कर्म निकंदन करण जंग, सुर असुर पूजीनो रे ॥ पा ॥ ॥३॥ हय गय वृषन सिंह सम कीन,उपेंज अचकी दिन इन ॥ चंडमारी उपमा दीन,नग मेरु करी. नो रे ॥ पा० ॥ ४ ॥ जंबू सीतासरित वखान, चरम जलधि तिम गुण मणि खान ॥ षोडश उपमा करी विधान, बहुश्रुत जस लीनो रे ॥ पा ॥५॥ अवगुण चौदे दूर करीन, पन्नर गुणकारी शिष्य पीन ॥ सरस वचन जिम तंत्री वीन, निज गुण सब चीनो रे ॥ पा० ॥ ६ ॥ महेंउपाल पद सेवी सार, तीर्थकर पद लीनो सार ॥ मदन जरमकों जार जार, श्रात्मरस नीनो रे॥पा ॥७॥ काव्यं ॥ अतिश॥मंत्रः॥ ॐ की श्री परम ॥ पाठकाय ज० ॥ यति ॥६॥ ॥अथ सप्तम साधुपदपूजा प्रारंजः ॥ ॥दोहा॥तजी विनाव खनावता,रमता समता संग ॥ विशदानंद खरूपता, लाग्यो अविहड रंग ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96