Book Title: Puja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( १ ) घटमांहि रुद्धि दाखी रे ॥ तिम नवपद द्धि जाण जो, तमराम बेसाखी रे ॥ वी० ॥ १२ ॥ योग असंख्य वे जिन कह्या, नव पद मुख्य ते जाणो रे || एह तणे अवलंबनें, आतमध्यान प्रमाणो रे ॥ ॥ वी० ॥ १३ ॥ ढाल बारमी ए हवी, चोथे खंकें पूरी रे ॥ वाणी वाचक जस तणी, कोइ नयें न अधूरी रे ॥ वी० ॥ १४॥ इति नवपदपूजा समाप्ता ॥
॥ अथ काव्यम् ॥ द्रुतविलंबितं वृत्तम् ॥ विमलके - वलनासनजास्करं, जगति जंतुमहोदयकारणम् ॥ जिनवरं बहुमानजलौघतः, शुचिमनाः स्नपया मि विशुद्धये ॥ १ ॥ इति काव्यम् ॥ या काव्य, प्रत्येक पूजादी कहेतुं ॥
॥ स्नात्र करतां जगत्गुरु शरीरें, सकल देवें विमल कलश नीरें ॥ श्रापणा कर्ममल दूर कीधां, तेणें ते विबुध ग्रंथें प्रसिद्धा ॥ २ ॥ हर्ष धरि अप्सरावृंद श्रावे, स्नात्र करिएम आशीष पावे ॥ जिहां लगे सुर गिरि जंबुदी वो, छाम तथा नाथ देवाधिदेवो ॥३॥ ॥ इति श्रीमद्यशोविजयजी उपाध्यायकृत नव पदपूजा संपूर्णा ॥
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