________________
(६)
चारज नमियें तेह, प्रेम करीजें जाचो रे ॥नवि०॥ सि० ॥ ११ ॥ वर बत्रीश गुणें करी सोहे, युगप्रधान जन मोहे ॥ जग बोहे न रहे खिल कोहे, सूरि नमुं ते जोहे रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १२ ॥ नित अप्रमत्त धर्म उवएसें, नहिं विकथा न कषाय ॥ जेहने ते श्राचारिज नमियें, अकलुष अमल श्रमाय रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १३ ॥ जे दिये सारण वारण चोयण, पडिचोयण वली जनने ॥ पटधारी गठ थंज श्राचारिज, ते मान्या मुनि मनने रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १४ ॥ मियें जिन सूरज केवल, चंदें जे जगदीवो ॥ भुवन पदारथ प्रगटन पटुते, आचार य चिरंजीवो रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १५ ॥
॥ ढाल ॥ ध्याता आचारिज जला, महामंत्र शुन ध्यानी रे | पंच प्रस्थाने आतमा, याचारिज होय प्राणी रे ॥ वी० ॥ ४ ॥ इति श्राचार्यपद पूजा स० ॥ ॥ चतुर्थ उपाध्यायपदपूजा प्रारंभः ॥
॥ काव्यं, इंद्रवज्रावृत्तम् ॥ सुत विचारणतप्पराणं ॥ नमो नमो वायगकुंजराणं ॥
ने
॥ जुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ नहीं सूरि पण सूरिगणसहाया, नमूं वाचका त्यक्तमदमोहमाया ॥ वलि
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Educationa International