Book Title: Puja Sangraha Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ (३) महा माहण कहियें, निर्यामक सबवाह ॥ उपमा ए रे ॥ ज० ॥ हवी जेहने बाजे, ते जिए नमियें उत्साह सि० ॥ ४ ॥ प्रातिहारज जस बाजे, पांत्रीश गुणयुत वाणी ॥ जे प्रतिबोध करे जगजनने, जिन नमियें प्राणी रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ ५॥ || ॥ ढाल ॥ श्ररिहंत पद ध्यातो थको, दवहगुण पकाय रे || जेद बेद करी आतमा, अरिहंत रूप थाय रे ॥ १ ॥ वीर जिनेसर उपदिशे, सांजलजो चित्त लाइ रे ॥ श्रातमध्यानें श्रातमा, रुद्धि मले सवि आई रे ॥ २ ॥ वी० ॥ इति अरिहंत पद पूजा ॥ ॥ द्वितीय सिद्धपद पूजा प्रारंभः ॥ ॥ इंद्रवज्रावृत्तम् ॥ सिद्धाणमाणंद रमालयाणं ॥ नमो नमोऽतचक्कयाणं ॥ ॥ भुजंग प्रयातवृत्तम् ॥ करी आठ कर्म कयें पार पाम्या, जरा जन्म मरणादि जय जेणें वाम्या ॥ निरावरण जे श्रात्मरूपें प्रसिद्धा, थया पार पामी सदासिद्ध बुद्धा ॥ १॥ त्रिजागोन देहावगाहात्मदेशा, रह्या ज्ञानमयजातवर्णा दिलेशा ॥ सदानंद सौख्याश्रिता ज्योतिरूपा, अनाबाध अपुनर्भवादिखरूपा ॥२॥ || ढाल ॥ उलालानी देशी ॥ सकल करममल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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