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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
व्रत सुशील क्रिया गुण श्रावका, पद सुलक्षण इग्यारह धारका। सहस सप्तति और मिलाइये, जजू पाठक ज्ञान बढाइये ।।७।। ॐ ह्रीं श्री एकादशलक्षसप्ततिसहस्रपदशोभितोपासकाध्ययनांगधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ॥१५२।। दश यती उपसर्ग सहन करे, समय तीर्थंकर शिवतिय वरे। सहस अट्ठाइस लख तेइसा, पद जजूं पाठक जिन सारिसा ।।८।। ॐ ह्रीं श्री त्रिविंशतिलक्षअष्टाविंशतिसहस्रपदशोभितांत:दशाङ्गधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ॥१५३।। दश यती उपसर्ग सहन करे, समय तीर्थ अनुसार अवतरे। सहस चव चालिस लख बानवे, पद धरे पाठक बहु ज्ञान दे ।।९।। ॐ ह्रीं श्री द्विनवतिलक्षचतुर्चत्वारिंशत्पदशोभितानुत्तरोपपादकांगधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।१५४।। प्रश्नव्याकरणांग महान ये, सहस्र सोलह लाख तिरानवे । पद धरे सुख दुःख विचारता, जजू पाठक धर्म प्रचारता ।।१०।। ॐ ह्रीं श्री त्रिनवतिलक्षषोडशसहस्रपदशोभितप्रश्नव्याकरणांगधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।१५५।। सहस चवरसि कोटि एक पद, धरत सूत्रविपाक सुज्ञान पद। करम-बन्ध उदय सत्वादिक कथं, जजूं पाठक जीते कामरथं ।।११।। ॐ ह्रीं श्री एककोटिचतुरशीतिसहस्रपदशोभितविपाकसूत्रांगधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।१५६।।। कथत षद्रव्यों की सारता, एककोटि पद को धारता। पूर्व है उत्पाद सु जानकर, जगूं पाठक निज रुचि ठान कर ।।१२।। ॐ ह्रीं श्री उत्पादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।१५६।। सुनय दुर्नय आदि प्रमाणता, नवति छह कोटि पद धारता। पूर्व अग्रायण विस्तार है, जज़े पाठक भवदधितार है ।।१३।। ॐ ह्रीं श्री अग्रायणीपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।।१५411