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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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सप्त तत्त्व का ज्ञान कराये, अचल विमल निजपद दरसावे । सुखसागर लहराये जिनवाणी ||४||
सांची तो गंगा यह...
साँची तो गंगा यह वीतरागवाणी । अविच्छिन्न धारा निजधर्म की कहानी । । टेक ॥। जामें अति ही विमल अगाध ज्ञानपानी । जहाँ नहीं संशयादि पंक की निशानी ॥ १ ॥ सप्तभंग जहँ तरंग उछलत सुखदानी । संतचित मरालवृन्द रमैं नित्य ज्ञानी ॥ २ ॥ जाके अवगाहनतैं शुद्ध होय प्राणी । 'भागचन्द' निहचैं घटमाहिं या प्रमानी ।।३ ॥
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केवलि-कन्ये वाङ्मय...
केवलि-कन्ये, वाङ्मय गंगे, जगदम्बे, अघ नाश हमारे । सत्य-स्वरूपे, मंगलरूपे, मन-मन्दिर में तिष्ठ हमारे । । टेक ॥। जम्बूस्वामी गौतम - गणधर हुए सुधर्मा पुत्र तुम्हारे । जगतैं स्वयं पार है करके, दे उपदेश बहुत जन तारे ।। १ ।। कुंदकुंद, अकलंकदेव अरु, विद्यानन्दि आदि मुनि सारे । तव कुलकुमुद चन्द्रमा ये शुभ, शिक्षामृत दे स्वर्ग सिधारे ।।२।। तूने उत्तम तत्त्व प्रकाशे, जग के भ्रम सब क्षय कर डारे । तेरी ज्योति निरख लज्जावश, रवि- शशि छिपते नित्य विचारे ।। ३ ।। भवभय पीड़ित व्यथितचित्त जन, जब जो आये शरण तिहारे । छिन भर में उनके तब तुमने, करुणा करि संकट सब टारे ।।४ ॥ जबतक विषयकषायनशै नहीं, कर्म-शत्रु नहिं जाय निवारे । तब तक 'ज्ञानानन्द' रहै नित, सब जीवन तैं समता धारे ॥५॥