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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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सर्व संयमधर मुमुक्षु दोष के परित्याग से। मोक्ष सुख पायें त्वरित वे सकल संयम सिद्धि से।।11।। संयम अहिंसा और तपमय धर्म मंगल श्रेष्ठ है। इस धर्म में जो मन लगाये देव भी उसको नमें। 12।।
अंचलिका हे प्रभु! चारित भक्ति करके मैंने कार्योत्सर्ग किया। इसमें लगे हुए दोषों का अब मैं आलोचन करता।। सम्यग्दर्शन-ज्ञान सुशोभित सर्वश्रेष्ठ शिवमार्ग स्वरूप। पंच महाव्रत पंच समिति त्रय गुप्ति निर्जरा क्षमा स्वरूप।1।। ज्ञान ध्यान का कारण है यह सम्यक् चारित धर्म महान। निज स्वरूप में लीनरूप सामायिक का यह द्वार महान ।। अर्चन पूजन वंदन नमन करूँ होवें दु:ख कर्मक्षय। बोधिलाभ हो सुगति गमन हो जिनगुण संपत्ति हो अक्षय। 2 ।।
(वीरछन्द) देश जाति कुल शुद्ध मनो-वच-तन विशुद्ध से जो संयुक्त। करें आपके पद-पंकज जग में मेरा कल्याण सुनित्य।।1।।
स्व-पर समय के ज्ञाता हैं जो आगम हेतु जाननहार। श्रुत स्वरूप के ज्ञाता मुनिवर श्रुत स्वरूप के जाननहार ।।2।। बाल वृद्ध रोगी-गिलान आदिक सब मुनियों के अपराध। जानें भलीभांति अरु उनको दृढ़ चारित्र करावनहार ।।3।। गुप्ति समति व्रत और अन्य को करते हो शिवपंथ संयुक्त। उपाध्याय गुण निलय और तुम साधु गुणों से भी हो युक्त।।। ।। भू-सम क्षमा शील हो निर्मल जल सम रहते सदा प्रसन्न। कर्मदाह्य को अग्नि तुल्य हो वायु समान सदा नि:संग।।5।।