Book Title: Pratishtha Pujanjali
Author(s): Abhaykumar Shastri
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 237
________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n U अंचलिका यह समाधि भक्ति करके अब मैंने कायोत्सर्ग किया। इसमें लगे हुए दोषों का अब मैं आलोचन करता । । रत्नत्रय के प्रतिपादक अरु परमातम के ध्यान स्वरूप । शुद्ध आत्मा की करता मैं सदा वन्दना मङ्गलरूप ।। सदा अर्चना पूजन वन्दन नमन करूँ हों सब दुःख क्षय । बोधि लाभ हो सुगति गमन हो जिनगुण संपत्ति हो अक्षय ।। भरतादिक के गिरि-शिखरों पर पंचमेरु नन्दीश्वर में । जितने चैत्यालय त्रिलोक में नमन करूँ जिन चरणों में ।।1।। पृथ्वी तल पर कृत्रिम अकृत्रिम, व्यन्तर, भवनवासि, दिवि में । यहाँ मनुजकृत, सुरपति वन्दित जिन चैत्यालय को वन्दूँ ।। 2 ।। 237 जम्बू - घातक - पुष्करार्ध के ढाई द्वीप में जो विचरें । चंद्र, कमल अरु मोरकंठ, कञ्चन, मेघों सम कान्ति धरें ।। सम्यग्ज्ञान चरित लक्षण धर भस्म करें कर्मेन्धन को । भूत भविष्यत वर्तमान के वन्दूँ सर्व जिनेश्वर को । 13 ।। पञ्चमेरु अरु कुलाचलों, विजयाधों, जम्बू, शाल्मलि पर । चैत्यवृक्ष, वक्षार, रुचकगिरि, रति, कुण्डल, मनुजोत्तर पर ।। इष्वाकार गिरि, अञ्जन, दधिमुख, व्यन्तर सुर लोकों में । ज्योतिर्लोक, भवन, भूतल पर जिनमंदिर को नमन करूँ ।। 4 ।। u

Loading...

Page Navigation
1 ... 235 236 237 238 239 240