Book Title: Pratishtha Pujanjali
Author(s): Abhaykumar Shastri
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 225
________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि 225 स्तुति करूँ अनन्त केवली, तीर्थंकर भगवन्तों की। ।। महाप्राज्ञ रजमल विहीन, चक्री एवं जग-वन्दित की।।।।। लोक प्रकाशक धर्मतीर्थकर्ता-जिन को वन्दन करता। चौबिस केवलि भगवन्तों का ही मङ्गल कीर्तन करता ।।2।। ऋषभ अजित संभव अभिनन्दन एवं सुमति जिनेश्वर को। वन्दूँ पद्मप्रभ सुपार्श्व एवं चन्द्रप्रभ जिनवर को ।। ।। सुविधिनाथ या पुष्पदन्त, शीतल, श्रेयांस अरु वासुपूज्य। विमल, अनन्त-रु धर्म शान्ति भगवन्तों को मैं नमन करूँ।।।। कुंथुनाथ, अरनाथ, मिल्ल, मुनिसुव्रत नमि भगवंतों को। वन्दन करूँ अरिष्टनेमि, पारस श्रीवीर जिनेश्वर को।।। ।। रज-मल और जरा-मरणान्तक, जो मुझसे स्तुत्य हुए। चौबीसों जिनवर तीर्थङ्कर भगवन् हों प्रसन्न मुझ पर ।।6।। मुझसे कीर्तित, वन्दित, पूजित, लोकोत्तम कृतकृत्य जिनेन्द्र। ज्ञान-बोधि-आरोग्य-समाधि-लाभ सदैव प्रदान करें।।7।। जो हैं शशि से भी अति निर्मल रवि से अधिक प्रभा-मण्डित। सागर-सम गम्भीर, सिद्ध पद प्राप्त, मुझे भी दें सिद्धि ।। ।। (शान्त्यष्टक) प्रभो! आपकी चरण-शरण में भक्तिवशात् न जन आते। विविध कर्म संतप्त भव्य जन शान्ति हेतु शरणा लेते।। अति प्रचंड किरणों से रवि जब जग को व्याकुल कर देता। चन्द्र-किरण, जल, छाया से अनुरागोत्पन्न करा देता।।1।।

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